Book Title: Padmapuran Bhasha
Author(s): Digambar Jain Granth Pracharak Pustakalay
Publisher: Digambar Jain Granth Pracharak Pustakalay
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पद्म पुराण
प्रदेशी अनंत गुणरूप सर्वको एकसमय में जाने सब सिद्धसमान कृतकृत्य जिनके कोई कार्य करना नहीं ६३ ॥ सर्वथा शुद्धभाव सर्वद्रव्य सर्वक्षेत्र सर्वकाल सर्वभाव के ज्ञाता निरंजन अत्मज्ञानरूप शुल्क ध्यान अग्निकर
अष्टकर्म बन के भस्म का हारे और महा प्रकाशरूप प्रताप के पुंज जिनको इन्द्र धरणेद्र चक्रवर्त्यादि पृथिवी केनाथ सबही सवें महास्तुतिकर वे भगवान संसारकै प्रपंचसे रहित अपने आनन्दस्वभाव तिनमई अनंत सिद्धए और अनंत होवेंगे अढाईद्वीप के विषे मोच का मार्ग प्रवृते है एकसौ साठ महाविदेह और पांच भरत पांच ऐरावत एकसौ सत्तर क्षेत्र तिनके आर्यखण्ड विषे जे सिद्धभए और होवेंगे उन सब को हमारा नमस्कारहो इस भरतने के विषे यह कोशिला यहांसे सिद्ध शिलाको प्राप्तभए वे हम को कल्याण के कर्ता होवें जीवोंको महा मंगलरूप, इस भांति चिरकाल स्तुतिकर चित्तमें सिद्धों का ध्यान कर सबही लक्षमणको आशीर्वाद देते भए. इस कोटिशिला से जे सिद्ध भए वे सर्व तुम्हारा विघ्न हरें अरिहंत सिद्ध साधु जिनशासन ये सर्व तुमको मंगलके करता होहु इसभांति शब्द करते भए और लक्षमण सिद्धों का ध्यान कर शिलाको गोड़े प्रमाण उठावता भया अनेक आभूषण पहिरे भुज बंधनकर शोभायमान है भुजा जिसकी सो भुजाओं से कोटिशिला उठाई तव आकाशमें देव जयजय शब्द करते भए सुग्रीवादिक आश्चर्यको प्राप्तभए कोटिशिला की यात्राकर फिर सम्मेद शिखरगए और कैलाशकी यात्रा कर भरत तू सर्व तीर्थ वंदे प्रदक्षिणा करी सांझ समय विमान बैठ जयजयकार करते हुए रामलक्ष्मण लार किहकंधपुर आए आप अपने स्थानक सुखसे शयन किया फिर प्रभातमया सब एकत्र होय परस्पर वार्ता करते भए देखो अब थोडेही दिन में इनदोनों भाइयों का निष्कंटक राज्य होयगा ये परम
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