Book Title: Padmapuran Bhasha
Author(s): Digambar Jain Granth Pracharak Pustakalay
Publisher: Digambar Jain Granth Pracharak Pustakalay
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पा मात्र भी शूरता नहीं और राम कहते भए बहुत कहनेसे क्या सीताकी सुधही कठिनथी अब सुध पाई || पुगर तब सीता पाय चुकी और तुम कही और बात करो और चिन्तवन करो सो हमारे और कछु बात नहीं
और कछू वितवन नहीं । सीताको लावना यही उपायहै । रामके बचन मुनकर वृद्धविद्याधर क्षण एक विचारकर बोले, हे देव शोक तजो हमारे स्वामी होवो और अनेक विद्याधरोंकी पुत्री गुणोंकर देवांगनासमान उनके भग्तार होवो और समस्तदुःखकी बुद्धि छोडो तब राम कहते भए हमारे और स्त्रियों का प्रयोजन नहीं जो शचीसमान स्त्रीहोय तोभी हमार अभिलाषानहीं जो तुम्हारी हममें प्रीतितो सीता हमें शीघही दिखावो तब जांबूनन्द कहताभया, हेप्रभो इसहठकीतजो एक सुद्र पुरुषने कृत्रिममयूरका हठ किया उसकीन्याई स्त्रीका हठकर दुखीमतहोवो यह कथा सुनो। एकवणातटग्राम वहां सर्व रुचि नामा गृहस्थी उसके विनयदत्त नामा पुत्र उसकी माता गुणपूर्णा और विनयदत्तका कुभित्र विशाल भूत जो पापी विनयदतकी स्त्रीसों आसक्तभया स्त्रीके बचनसे विनयदतको कपटसे बनम लगया सी एक वृक्ष के ऊपर | बांध वह दुष्ट घर चला आया कोई विनयदर्शक समाचार पूछे तीउसे कछुमिथ्या उत्तरदय सांचा होय रहे
और जहां विनयदत्त बन्धाथा वहां एक तुद्रनामा पुरुषायावृचके तले बैठा वृक्ष महासघन विनयदत्त कुरलावताथा सो तुद्रदेख तो दृढ़ बन्धनकर मनुष्य बृक्षकी शाखाके अग्रभाग बन्धाहै तब क्षुद्र दयाकर ऊपर चढ़ा विनयदत्तको बन्धनस निवृतकिया विनयदत्त द्रव्यवानसोंचूद्रको उपकारी जान अपने घर लेगया भाईसे भी अधिक हितराखे विनयदत्तके घर उत्साहभया और वह शिलाभूत कुमित्र दूर भागगया तुद्र विनयदत्तका परमामंत्र भया सो क्षुद्रका एक क्रीड़ा करनेका कागजका मयूर सो पवनकर उडाराज
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