Book Title: Padmapuran Bhasha
Author(s): Digambar Jain Granth Pracharak Pustakalay
Publisher: Digambar Jain Granth Pracharak Pustakalay
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पद्म
॥२६॥
समानश्रीराम सारिखे पुरुष तिनका चित्त विषय बासना से विरक्त है परन्तु पूर्व जन्म के सम्बन्ध से कई एक दिन विरक्त रूप गृह में रह फिर त्याग करेंगे। इतिश्री अठतालीसवांपर्व संमपूर्णम् ॥ ___ अथानन्तर वे सुग्रीव की कन्या रामका मनमोहने के कारण अनेक प्रकारकी चेष्टाकरतीभई मानों देवलोक ही से उतरी हैं वीणदिक का वजावना मनोहर गीतका गावना इत्यादि अनेक सुन्दर लीला करती भई तथापि रामचन्द्रका मन न मोहा-सर्वप्रकार के विस्तीर्ण विभव प्राप्त भए परन्तु रामने भोगों में मन न किया सीता विषे अत्यन्त चित्त समस्त चेष्टा रहित महाश्रादर से सीता को ध्यावते तिष्ठे जैसे मुनिराज मुक्ति को ध्यावे वे विद्याधर की पुत्री गान करें सो उन की ध्वनि न सुनें और देवांगना समान तिनका रूप सोन देखें राम को सर्व दिीजानकी मई मासे और कछू भासे नहीं और कथानकरें ए सुग्रीव की पुत्री परणी सों पास वैठी तिनको हे जनकसुते ऐसा कह वतला काक से प्रीति कर पूछे अरे काकतू देश २ भूमण करे है तैने जानकी भी देखी और सरोवसेंमें कमलफूल रहे तिनकेमकरन्द कर जलसुगन्ध होय रहाहै वह चकवा चकवीके युगल कलोल करते देख चितारे सीताबिन रामको सर्ब शोभा फीकी लगे सीता के शरीर के संयोग की शंका से पवन से आलिंगन करेंकदाचित् पवन सीता जीके निकट से आई होय जिस भूमि में सीता जी तिष्ठे हैं उस भूमि को धन्य गिनें और सीता बिना चन्द्रमा की चादनी को अग्नि समान जाने मन में चितवें कदाचित सीतो मेरवियोग रूप अग्नि से भस्म भई होय और मन्द मन्द पवन कर लताओं को हालती देख जाने हैं यह जानकी ही है, और वेल पत्र हालते देख जाने जानकी के वस्त्र फरहरे हैं, और भ्रमर संयुक्त फूल देख जानें जानकी के लोचन ही हैं, और
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