Book Title: Padmapuran Bhasha
Author(s): Digambar Jain Granth Pracharak Pustakalay
Publisher: Digambar Jain Granth Pracharak Pustakalay
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पन कोंपल देख जानें जानको के करपल्लव ही हैं अरश्वेत श्याम प्रारक्त तीनोंजाति के कमलदेख जानें सीता १६२७। के नेत्र तीन रंगको धरे हैं और पुष्पों के गुच्छे देख जानेजानकी जी के शोभायमान स्तनही हैं और कदलीके स्तंभोंविषे जंघात्रोंकी शोभा जाने औरलालकमलों मे चरणोकी शोभाजाने संपूर्णशोभा जान कीरूपहीजाने
अथानन्तर सुग्रीव सुताराके महिलमें ही रहा राम पै अाये बहुत दिन भए तब रामने विचारी उसने साता नदेखी मेर वियोगकर तप्तायमान भई वह शीलवन्ती मरगई इसलिये सुग्रीव मेरेपास नहीं आवे अथवा वह अपना राज्य पाय निश्चिन्त भया हमारा दुःख भूल गया यह चितवनकर राम की आंखों से आंसू पडे तघ लक्षमण राम को सचिन्त देख कोप कर लोल भए हैं नेत्र जिन के प्राकुलित है मन जिन का नांगी तलवार हाथ में लेय सुग्रीव ऊपर चले सो नगर कम्पायमान भया सम्पूर्ण राज्य के अधिकारी तिन को उलघ सुग्रीव के महल में जाय उस को कहा रे पापी अपने परमेश्वर राम तो स्त्री के दुःख से दुखी
और तू दुर्बुद्धि स्त्री सहित सुख करे, रेविद्याधर बायस विषय लुब्ध दुष्ट जहां रघुनाथने तेरा शत्रु पठाया। है वहाँ मैं तोहे पठाऊंगा इस भांति क्रोध के उग्र वचन लक्षमण ने जब कहे तब सुग्रीव हाथ जोड़ नमस्कारकर लक्षमण का क्रोध शान्त करताभया सुग्रीव कहे है हे देव मेरी भूल माफकरो में करार भूलगया हम सारिखे क्षुद्र मनुष्योंके खोठी चेष्टा होयहै और सुग्रीवकी संपूर्ण स्त्री कांपती हुई लक्षमणको अर्घदेय
आरती करती भई हाथ जोड़ नमस्कारकर पतिकी भिक्षा मांगती भई तब आप उत्तम पुरुष तिनको दीन जान कृपाकरते भए यह महन्त पुरुष प्रणाममात्रही से प्रसन्न होंय और दुर्जन महादान लेकरभी प्रसन्न न होय लक्षमण ने सुग्रीव को प्रतिज्ञा चिताय उपकार किया जैसे यक्षदत्तको माता का स्मरण कराय मुनि |
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