Book Title: Padmapuran Bhasha
Author(s): Digambar Jain Granth Pracharak Pustakalay
Publisher: Digambar Jain Granth Pracharak Pustakalay
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पद्म सांचा सुग्रीव मूर्थितहोय पडा सो परिवारके लोक डेरामें लाये तब सचेत होय रामसों कहता भया हे पुगए
प्रभो मेरा चोरं झमें पाया हुश्रा सो नगरमें क्यों जाने दिया तब राम कही तेरा और उसका रूप देखकर हम भेद न जाना इस लिये. सो तेरा शत्रु न हता कदाचित बिना जाने राहीं नास झेय तो योग्य नहीं तू हमारा परममित्र है तेरे और हमारे जिन मंदिरमें बचन हुवा है।
अथानन्तर रामने मायामई मुग्रीवको फिर युद्धके निमित्त बुलायासोबहावलवान क्रोधरूप अग्नि कर जलता आया राम संन्मुखभए वह समुद्र तुल्य अनेक शस्त्रोंके धारक सुभट वेई भए ग्राह उनकर पूर्ण उस समयं लंचमणने सांचा. मुग्रीव पकड राखा कि कभी स्त्रीके बैरसे शत्रुके सन्मुख नपाएऔर श्रीरामको देखकर मायामई सुग्रीवके शरीर में जो बैताली विद्याथी.सो ताको पूछकर उसके शरीरमें से निकली तत्र सुग्रीवक्ता श्राकार मिट.वह साहसंगतिविद्याधर इन्दनीलके पर्वतसमान भासता भया जैस सांपकी कांचली दूर होय तैसे सुग्रीवका रूप दूर होगया. तब जो आधी सेना बानरवंशियोंकी इसके साथथी सो उस से जुदी उसके सन्मुखहोय युद्धको उद्यमी भई सब बानर बंशी एकहोय नानाप्रकारके श्रायुधों से साहसगतिसौं युद्ध करते भए सो साहसगति महा तेजस्वी प्रबलशक्ति का स्वामी सब बा र बंशियों को दशादिशाको भगाता भया जैसे, पवन धूलको उड़ावे फिर, साहसगति धनुष बाण लेय राम पें, आया सो मेघमंडल समान बाणोंकी वर्षा करता. भया उद्धतहै पराक्रम जिसका. साहसगतिके और
श्रीरामके महायुद्ध भया प्रवलेहै पराकूम जिनका ऐसे सम रणकीडामें प्रवीण क्षुद्रवाणोंसे साहसगति | का वक्तर तोंडतेभए और तीक्षण बाणों से साहसगातिका शरीर चालिनी समान कर डारासोप्राणरहित
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