Book Title: Padmapuran Bhasha
Author(s): Digambar Jain Granth Pracharak Pustakalay
Publisher: Digambar Jain Granth Pracharak Pustakalay
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पद्म
पुराख
६१८
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प्राण तजेगा जिसकी स्त्री जाय सो कैसे जीवे, और राम मूवा तव केला लक्ष्मण क्या करेगा अथवा राम के शोक कर लक्ष्मण अवश्य मरे न जीवे जैसे दीपक के गए प्रकाश न रहे और यह दोनों भाई
तब अपराधरूप समुद्र में डूबा जो विराधित सो क्या करेगा और सुग्रीव का रूप कर विद्याघर उस के घर में आया है सो रावण टार सुग्रीव का दुःख कौन हरे मायामई यंत्र की रखवारी सुग्रीव को सौंपी जिससे वह प्रसन्नहोय रावण इसके शत्रु का नाश करे लंका की रक्षाका उपाय मायामई यंत्र कर करना। यह मंत्र कर हर्षित होय सब अपने अपने घर गए विभीषण ने मायामई यंत्र कर लंका का यत्न किया और अधःऊर्धतिर्यक् सेकोऊन आयसके नानाप्रकार कीविद्याकरलंका अगम्यकरी । गौत्तमगणघर कहै हैं श्रेणिक संसारी जीव सर्व ही लौकिक कार्य में प्रवृते हैं व्याकुलचित्त हैं और जे व्याकुलता रहित निर्मलचित्त हैं तिनको जिन वचन के अभ्यास टाल और कर्तव्य नहीं और जो जिनेश्वर ने भाषा है सो पुरुषार्थ बिना सिद्ध नहीं और मले भवितव्य के बिना पुरुषार्थ की सिद्धि नहीं, इसलिये जे भवजीव हैं वे सर्वथा संसारसे विरक्त होय मोक्षका यत्नकरो नर नारक देव तिर्यंच ये चार ही गति दुःखरूपहैं अनादि काल से ये प्राणी कर्मके उदयकर युक्त रागादि में प्रवृते हैं इसलिये इनके चित्तमें कल्यानरूप वचन न आवें अशुभ का उदय मेट शुभ की प्रवृति करे तब शोकरूप अग्नि कर तप्तायमान न होय ॥ इति सैंतालीसवां पर्व ॥
अथानन्तर किहकंधापुर का स्वामी जो सुग्रीव सो उसका रूप बनाय विद्याधर इसके पुरसें चाया और सुग्रीव कांता के विरहकर दुखी भ्रमता संता वहां आया जहां खरदूषण की सेनाके सामंत मूए पड़े थे विखरे रथ मूए हाथी मूए घोडे छिन्न भिन्न होय रहे हैं शरीर जिनके कैयक राजावों का दाह होय है
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