Book Title: Padmapuran Bhasha
Author(s): Digambar Jain Granth Pracharak Pustakalay
Publisher: Digambar Jain Granth Pracharak Pustakalay
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कुसमाका पतिसो सुग्रीवकी पुत्री परणाहै सुग्रीवकी पत. विशेषहै. यह बचन संभिन्नमतिके सुन पंचमुख मंत्री मुसकाय बोला तुम खरदूषणके मरणकर सोच किया सो शूरवीरों की यही रीतिहै संग्राम विषे शरीर तजें और एक खरदूषणके मरणकर रावमाका क्या घट गया जैसे पवनके योगसे समुद्र से एक जलकी कगिका गई तो समुद्रका क्या न्यून भाँ और तुम औरोंकी प्रशंसा करो हो सो मेरे चित्तमें लज्जा उपजे है. कहां रावण जगतका स्वामी और कहां वै बनवासी भूमिंगोचरी लक्षमणके हाथ सूर्यहास खडग आया तो क्या और विगधित पाय मिला तो क्याजैसे पहाड विषमहै और सिंहकर संयुक्तहै तोभी क्या दावानल नदहे सर्वथा दहे तब सहस्रमति मंत्री माथा हलाय कहताभया कहां ये अर्थहीन बातें कहो हो जिसमें स्वामीका हितहोय सो करना दूसरा स्वल्पहै और हम बडे हैं यह विचार बुद्धिमानका नहीं समयपाय एक अग्निका किणकासकलमंडलको दहे और अश्वग्रीव के महा सेनाथी और सर्व पृथिवींविषे प्रसिद्ध हुवाथा सो.छोटेसे त्रिपृष्टिनेरणमें मारलिया इसलिये और यत्नतजलंका की रक्षाको यत्न करो। नगरीपरम दुर्गमकरी कोई प्रवेशन करसकेमहाभयानक मायामई यंत्रसर्व दिशौं में बिस्तारों, और नगरमें पर चक्रका मनुष्य न श्रावने पाये और लोक को धीर्य बंधावो और सब उपाय कर रक्षा करो जिसकर रावण सुखको प्राप्तहोय और मधुर वचनकर नाना बस्तुओंकी भेटकर सीताको प्रसन्न करो जैसे दुग्ध पायवेसे नागी प्रसन्न करिये और बानर बंशी योधाओंकी नगर के बाहिर चौकी राखो ऐसे किए कोऊ परचक्रकाधनीनाय सके और यहांकी बात परचक्रमें न जाय इस भांति गढ का यत्न कीये तब कौन जाने सीता कौन ने हरी और कहां है सीता विना-राम निश्चय सेती
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