Book Title: Padmapuran Bhasha
Author(s): Digambar Jain Granth Pracharak Pustakalay
Publisher: Digambar Jain Granth Pracharak Pustakalay
View full book text
________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
पुरा ॥६१९०
| कैयक ससके हैं कईएकोंकी भुजा कटगई हैं कईओं की जंघा कटगई हैं । कईमों की प्रांत गिरपड़ा हैं |
कईओंके मस्तक पड़े हैं कइयोंको स्यालभषे हैं कइयोंको पक्षी चूथे हैं कयकोंके परबार रोवे हैं कईयकोंको टांगि राखे हैं यह रण खेतका वृतांत देख सुग्रीवकिसी को पूछता भया तब उसने कही खरदूषण मारा गया तब सुग्रीवने खरदूषण का मरण सुन अति दुःख किया मनमें चितवे है बड़ा अनर्थ भया वह महाबलवान था जिससे मेरा सर्बदुःख निवृत्त होता सो कालरूप दिग्गजने मेरा अाशारूप वृक्ष तोड़ा में हीनपुण्य अव मेरा दुःख कैसेशांत होय यद्यपि बिना उद्यम जीव को सुख नहीं ताते दुःखदूर करने का उद्यम अंगीकार करूं तब हनमान पै गया हनुमान दोनों का समानरूप देख पीछे गया तब सुग्रीवने विचारी कौन उपायकरूं जिससे चित्तकी प्रसन्नता होय जैसे नवा चांद निषे हर्ष होय जो रावणके शरण जाऊं तो रावण मेरा और शत्रुका एकरूप जान शायद मुझे ही मारे अथवादोनों को मार स्त्री हरलेय वह कामांध है कामांधका विश्वासनहीं। मंत्रदोष अपमानदान पुण्य वित्त शूरवीरता कुशील मनका दाह यहसब मित्र को नकहिए जोकहें ख़तापावें इसलिये जिसने संग्राममें खरदूषण को मारा उसहीके शरणे जाऊं वह मेरा दुःख हरे और जिसपै दुःख पड़ा होय सोदुखी के दुःख को जाने जिनकी तुल्य अवस्थाहोय तिनही में स्नेह होय सीता के वियोगको सीतापति ही को दुःख उपजा है ऐसा विचार कर विराघितके निकट अति प्रीतिकर दूत पठाया सो दूत जाय सुग्रीव के आगम का वृत्तांत विराधित से कहता भया सो विराघित सुन कर मनमें हर्षित भया विचारी बड़ा आश्चय है सुग्रीव जैसे महाराज मुझ से प्रीति करने को इच्छा करें सो बड़ोंके आश्रय से क्या न होय में श्रीरामलक्षमणका आश्रय किया इसलिये सुग्रीव से पुरुष मोसे |
For Private and Personal Use Only