Book Title: Padmapuran Bhasha
Author(s): Digambar Jain Granth Pracharak Pustakalay
Publisher: Digambar Jain Granth Pracharak Pustakalay
View full book text
________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir
पया
तिष्ठता जो खरदूषण उसे लक्ष्मणने रथरहित किया और उसका धनुषतोड़ा और ध्वजाउड़ायदई औरप्रभा । रहित किया तब वह क्रोधकर भरा पृथिवीके विषे पड़ा जैसे क्षीणपुण्य भए दैव स्वर्ग से पडे फिर महा सुभट खडगलेय लक्ष्मणपर पाया तब लक्षमण सूर्यहास खडगलेय उसके सन्मुख भया इन दोनों में नानाप्रकार महायुद्ध भया देव पुष्पवृष्टि करते भए, और धन्य २ शब्द करतेभए फिर महा युद्धके विषे सूधहास खडगकर लक्षमणने खरदूषणका सिर काटा सो निर्जीव होय खरदूषण पृथिवी पर पड़ा मानों स्वर्गसे देव गिरा सूर्यसपानहे तेज जिसका मानों रत्न पर्वतका शिखर दिग्गजने ढाहा।
अथानन्तर खरदूषणका सेनापति दूषण विरापितको रथ रहित करनेको प्रारम्भताभया तब लक्षमण ने बाणसे मर्मस्थलको घायल किया सो घूमताभूमि में पड़ा और लक्षमणने खरदूषणका सकल समुदाय और कटक और पाताल लंकापुरी विरातिको दीनी और लक्षमण अतिस्नेहका भरा जहाँ राम तिष्ठे हैं वहां पाया प्रानकर देखे तो आप भूमिमें पड़े हैं और स्थानकमें सीता नहीं तबलचमणने कही हे नाथ उठो कहां सोवो हो जानकी कहां गई, तब राम उठकर लक्षमणकोघावरहित देख कछु इक हर्षको प्राप्तभए । लक्ष्मणको उरसे लगाया और कहतेभए । हे भाई में न जानूं जानकी कहां गई। कोई हर लेयगया अथवा सिंह भषगया बहुत हेगसो नपाई अति सुकुमार शरीर उदवेगकर विलयगई तब लचमण विषादरूप होय क्रोधकर कहताभया। हे देव सोचके प्रबन्ध कर क्या यह निश्चय करो। कोई दुष्ट दैत्य हर लेगयाहै जहां तिष्ठे है सोलावेंगेश्राप संदेह न करो नानाप्रकारके प्रिय बचनों से रामको धीर्य बंधाय और निर्मलजनसे सुबुद्धिने रामका मुख धुवाया इसी समय विशेष शब्द मुन राम ने |
For Private and Personal Use Only