Book Title: Padmapuran Bhasha
Author(s): Digambar Jain Granth Pracharak Pustakalay
Publisher: Digambar Jain Granth Pracharak Pustakalay
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पद्म
पुरान
६००॥
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बीती सुनो तुम सारिख दुख का क्षय करनहारे हो उसने घी कही आप सारी समक्षगए उस के मस्तकपर घर कहते भए तू डर मत हमारे पीछे खड़ा रह तब वह नमस्कार कर प्रति श्राश्चर्य को प्राप्त होय कहता या हे प्रभो यह खरदूषण शत्रु महाशक्ति को घरे है इसे आप निवारो और सेना के योघावों से मैं लडूंगा ऐसा कह खरदूषण के योद्धाओं से विराधित लड़ने लगा दौड़ कर तिनके कटक पर पड़ा अपनी सेना सहित ललाट करे हैं श्रायुधों केसमुह विराधित तिन से प्रगट कहता भया में राजा चन्द्रोदय का पुत्र विधित घने दिनों में पिता का बैर लेने आया हूं युद्ध का अभिलाषी अब तुम कहां जावो हो जे युद्ध में . मुत्रीय होतो खड़े रहो, में ऐसा भयंकर कल दूंगा जैसा यम देय ऐसा कहा तब तिन योद्धावोंके और इन केमहासंग्राम भयो धनेक सुभर दोनों सेना के मारे गए पियादे प्यादेयों से घोड़ों के प्रसवार घोड़ों के
वारों से हाथीयों के सवार हाथीयों के असवारों से रथी रथीयों से परस्पर हर्षित होय युद्ध करते भए । वह उसे बुलावे वह उसे बुलावे इस भान्ति परस्पर युद्ध कर दशों दिशा को बाणों से माछादित करते भए ।
अथानंतर लक्षमण और खरदूषण का महायुद्ध भया जैसा इन्द्र और असुरेन्द्रके युद्ध होय उस समय खरदूषण क्रोध कर मण्डित लक्षमणसे लाल नेत्र कर कहता भया । मेरा पुत्र निवेर सो तेंने हा और चपल तैंने कांता के कुचमर्दन किये सो मेरी दृष्टि से कहां जायगा ब्राज तीक्षण वाणों से तेरे प्राण हरूंगा जैसे कर्म किए हैं तिनका फल भोगवेगा, हे क्षुद्र निर्लज्ज पर स्त्री संग लोलुपी मे रे सन्मुख आय कर परलोक जा । तब उस के कठोर बचनों से प्रज्वलित भयाहैमन जिसका सो लक्षमण वचन कर सकल आकाश को पूरताहुवा कहता भया । अरे क्षुत्र वृथा क्यों गाजे है जहाँ तेरा पुत्र मया वहां तुझे पठाऊंगा ऐसा कहकर आकाश के विषे
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