Book Title: Padmapuran Bhasha
Author(s): Digambar Jain Granth Pracharak Pustakalay
Publisher: Digambar Jain Granth Pracharak Pustakalay
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पद्म पुरास
|| विभाषणके सुनकर रावण वोले हे भाई पृथिवी पर जोसुन्दर वस्तु है उसका मैं स्वामी हूँ सब मैरीही वस्तु । | पर वस्तु कहांसे आई ऐसा कहकर और बात करनेलगा फिर महानीतिका भारी मारीच मन्त्री क्षण एक पीछे कहताभया देखो यह मोह कर्मकी चेष्टा रावण जैसा विवेकीसर्वरीतिको आने ऐसे कर्मकरे सर्वच जे सुबुद्धि पुरुष हैं तिनको प्रभातही ऊकर अपनी कुशल अकुशल चितवनी विवेक से न चकना इस भांति निरपेक्ष भया महा बुद्धिमान मारीच कहता भया तब रावण मे कछ पाछा जवाब न दिया उ8 खड़ा रही त्रैलोक्य मण्डन हाकी पर चढ़ सब सामन्तम सहित उपवन से मगरको चला बरली, खडग, ॥ तोमर, चमर, छत्र ध्वजा आदि अनेक वस्तु हैं हाथों में जिनके ऐसे पुरुष भागे चलेजाय, अनेक प्रकार शब्द झेय, चंचलहै ग्रीवा जिमकी ऐसे हजागं सुरंगों पर चढ़े सुभट चलेजायहैं और कारी घय समान मद झरतेगाजते गजराज चलेजायहें और मामामास्की चधकरते पयादे चलेजाय हैं हजारो वादिन बामे इस भांति से राक्पने लंका में प्रवेश किया खवय के चक्रवर्ती की संपदा तथापि सीता तृणसभी नयम्य जाने सीता का मन निष्कलंक यह लुभाष को समर्थन भया जैसे जल में कमल अलिस रहे तैसे सीता अलिप्त रहे सर्व ऋतु के पुष्पों से शोभित नामा प्रकार के वृक्ष और मतावों से पूर्ण ऐसा श्रमद नामा बन वहां सीता सरली वह पम नन्दन समान सुन्दर जिसे लखे नेत्र प्रसन्न होय फुलमिरि के ऊपर यह क्न सो देखे पीछे और टोर दृष्टि म लगे मिसे सखे देवों का मन उन्मोद को पाम होय मम्॥
ष्योंकी क्या बात बह फुल्लगिरि सप्तवन से येष्टित सोहे जैसे भदशालादि बनकर सुमेरु सोहे है। । हेश्रेणिक सातही वन अद्भुतहैं उनके नामसुन प्रकीर्णक, जनानन्द, सुखसेव्य, समुच्चय, चारणप्रिय, निबोध
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