Book Title: Padmapuran Bhasha
Author(s): Digambar Jain Granth Pracharak Pustakalay
Publisher: Digambar Jain Granth Pracharak Pustakalay
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पद्म पुरा
चोदह हजार राजा संगचले सो दण्डक वन में आए उनकी सेना के वादित्रों के शब्द समुदके शब्दसमान yera सीता सुनकर भयको प्राप्तभई हे नाथ क्या है कहां है ऐसे शब्द कह पतिके अंग सें लगी जैसे कल्प बेल कल्प वृक्षसे लगे तब आप कहतेभए हे प्रिये भय मतकर इसे घीर्य बंधाय विचारते भए यह दुर्धर शब्द सिंहका है अक मेघ का अक समुद्रका ह अकदुष्ट पक्षियोंका है सब आकाश पूरगया है तब सीता से कहतेभये हे प्रिये ये दुष्टपक्षीहैं जे मनुष्य और पशुवको लेजाए हैं धनुषके टंकोर से इनको भगादूं उतने ही में शत्रू की सेना निकटाई नानाप्रकारकेच्यायुधोंकर युक्तसुभट दृष्टिपरे जैस पवनके में रे मेघघटावों के समूहविचरें तेस विद्याधर विचारतेभए तब श्रीरामने विचारी ये नन्दीश्वर द्वीपको भगवान की पूजाके अर्थ देव
हैं अथवा बांसों के बीडे में काहू मनुष्यको हतकर लक्ष्मण खडग रत्न लाया और वह कन्या बन
सकुशल थी उसने ये अपने कुटुम्ब केसामन्त प्रेरे हैं इसलिये अपरसेना समीपच्चाए निश्चिंत रहना उचित नहीं धनुषकी ओर दृष्टिधरी और बत्तर पहिरने की तैयारी करी तब लक्षमण हाथजोड़सिर निवाय बिनती करताभया हे देव मेरेहोते आपको एतापरिश्रम करना उचित नहीं आप राजपुत्री रिचा करो मैं शत्रुओं के सन्मुख जाऊं हूं सो जो कदाचित भीड़ पडेगी तो मैं सिंहनाद करूंगा तब आप मेरी सहाय करियो ऐसा कहकर बक्तर पहर शस्त्रधार लक्ष्मण शत्रुओं के सन्मुख युद्धको चला सो वे विद्या धर लत्तणको उत्तम आकारका धारनहारा बीराधिवीर श्रेष्ठपुरुष देख जैसे मेघपर्वतको बेढ़े तैसे बेढ़ते भए शक्ति मुदगर सामान्य चक्र बरछी बाग इत्यादि शस्त्रों की वर्षा करते भए सो अकेला लक्षमण सर्व विद्याधरों के चलाए बाण अपने शस्त्रों से निवारताभया और आपविद्याधरों की ओर आकाशमेव चदण्ड
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