Book Title: Padmapuran Bhasha
Author(s): Digambar Jain Granth Pracharak Pustakalay
Publisher: Digambar Jain Granth Pracharak Pustakalay
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पन्न
॥५३॥
| रहित होय इन्द्री जीत साधुओं की भक्ति कर देव अरहंत गुरु निर्गथ दया धर्म में निश्चय कर इस भांति मुनिने अाज्ञा करी तब पक्षो बारम्बार नमस्कार कर सुनि के निकट श्रावक के व्रत घारता भया सीताने जानी यह उत्तम श्रावक भया तब हर्षित होय अपने हाथसे बहुत लडाया। उसे विश्वास उपजाय दोनों मुनि कहतेभये यह पक्षी तपस्वी शांत चित्त भया कहां जायगा गहन बनमें अनेक कर जीव हैं इस सम्यग्दृष्टि पक्षो की तुमने सदा रक्षाकरनी यह गुरुके वचन सुन सीता पक्षी के पालिवेरूपं है चित्त जिसका अनुग्रहकर राखो । राजा जनककी पुत्रीकर कमलकर विश्वासती संती कैसी शोभतीभइ जैसे गरुड़ की माता गरुड़को पालती शोभे और श्रीराम लक्षमण पक्षीको जिनधर्मी जान अतधर्मानुराग करतेभये और मुनियों को स्तुतिकर नमस्कार करते भये दोनों चारणं मुनि आकाश के मार्ग गए सो जाते कैसे शोभतेभये मानो धर्मरूप समुद्रकी कल्लोलही हैं और एक बनका हाथी मदोन्मत्त बनमें उपद्रव करताभया उसको लक्षमण वशकर उसपर चढ़ रामपै आए सो गजराज गिरिराज सारिखा उसे देख राम प्रसन्नभए और वह ज्ञानी पक्षी मुनिकी आज्ञा प्रमाण यथाविधि अनुबत पालताभया महा भाग्यके योगसे राम लक्षमण सीताका उसनेसमीप पाया इनके लार पृथिवी में विहार करे यह कथा गौतम स्वामी राजो श्रेणिक से कहे हैं। हे राजन धर्मका माहात्म्य देखो इसही जन्म में वह विरूप पक्षी अद्भुत रूप होय गया प्रथम अवस्थाविषे अनेक मांसका आहारी दुगंध निद्यपक्षी सुगन्धके भरे कञ्चन कलश समान महासुगन्ध सुन्दर शरीर होय गया, कहूं इक अग्निकी शिखासमान प्रकाशमान और कहूं इक वैडूर्यमणि समानकहूंइक स्वर्ण समान कहूंइक हरित्मणि की प्रभा को घरे शोभता भया राम लक्ष्मण के समीप बह ।
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