Book Title: Padmapuran Bhasha
Author(s): Digambar Jain Granth Pracharak Pustakalay
Publisher: Digambar Jain Granth Pracharak Pustakalay
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परास
पा | वास हपका कारण है यहां स्थानककर है भाई तू दोनों मातावों के लायवे को जावे अत्यन्त शोक |
वनी हैं सो शीघही लावो अथवा तू यहां रहो और सी..ा तथा जटायुभी यहारहे में मातावों के ल्यायबे को जाऊंगा तब लचमण हाथजोड़ नमस्कारकर कहता भयाजोआपकी आज्ञा होयगी सो होयगा तब राम कहतेभए अबतो वर्षा ऋतु आई और ग्रीषम ऋतु गई यह वर्षा ऋतु अति भयंकर है जिसमें | समुद्र समान गाजते मेघ घयनोंके समूह विचरे हैं चालते अंजनगिरि समान दशों दिशा में श्यामता होयरहीहै बिजुरी चमके है बगुलावोंकी पंक्ति विचरे हैं और निरन्तर वादलोंसे जल वस्सेहे जैसेभगवान के जन्मकल्याण में देवरत्न धारा वरसावें और देख हे भ्राता यह श्याम घय तेरे रंग समान सुन्दर जलकी बूंद बस्सावे हैं जैसे तदान की धारा बरसावे ये बोदर प्राकाशमें विचरते विजुरीके चमत्कारकर युक्त बड़े बड़े गिरियोंको अपनी पाराकर श्राबादतेसंते धनि करतेसंते कैसे सोहे हैं जैसे तुमपीतवस्र पहिरे अनेक राजावोंको आज्ञाकरते पृथिवीको कृपादृष्टिरूप अमृतकी वृष्टिसे सींचते से हो हे बीर! ये कैयकबादर पवनके वेगसे आकाशविषे भूमें हैं जैसे यौवन अवस्थामें असंयमियोंका मन विषय बासनामें भूमे, और यह मेघ नाजके खेत छोड़ वृथा पर्वतोंके विषे बरसे हैं जैसे कोई द्रव्यवान पात्रदान और करुणादान तज वेश्यादिक कुमार्गमें धन खोवे, हे लक्ष्मण ! इस वर्षाऋतुमें अतिवेगसूं नदी बहे हैं और धरती कीचसों भर रही है और प्रचंड पवन बाजे है भूमिविषे हरित काय फैल रही है और त्रसजीव विशेषतासे हैं इस समयमे विवेकियों का बिहार नहीं ऐसे बचन श्रीरामचन्द्रके सुनकर सुमित्राका नन्दन लक्ष्मण बोला
हे नाथ ! जो आप आज्ञा करोगे सो ही में करूंगा ऐसी सुन्दर कथा करते दोनों बीर महाधीर सुंदर | स्थानकमेंसुखसे वर्षाकालपूर्ण करतभए कैस हैवर्षाकाल जिससमय सूर्य नहीं दीखेहै।इतितेंतालीसापर्व
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