Book Title: Padmapuran Bhasha
Author(s): Digambar Jain Granth Pracharak Pustakalay
Publisher: Digambar Jain Granth Pracharak Pustakalay
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पद्म बैठा सो कहां बैठा दण्डक बनमें कोचवा नदीके उत्तर तीर बांसके बीडमें बैठा बारहवर्ष साधन किया। पुराण ३८६ | खड्ग प्रकटभया सो सातदिनमें यह न लेय तो खड्ग और के हाय जाय और यह माराजायसो चंद्र
नखा निरन्तर पुत्रके निटक भोजनलेय पावती सो खडगको देख प्रसन्नभई और पतिसे जाय कही कि संबुकको सूर्यहास सिद्धभया अब मेरा पुत्र मेरुकी तीन प्रदक्षणाकर आवेगा सो यहतो ऐसे मनोरथ करे और उसबनमें भ्रमता लक्ष्मण पाया हजारों देवोंसे रक्षायोग्य खडग स्वभाव सुगन्ध अद्भुत रत्नसो गीतम कहे हैं हे श्रेणिक वह देवोपुनति खडग महासुगन्ध दिव्य गंधादिककर लिप्त कल्पवृक्षों के पुष्ाँकी माला तिनसे युक्तसो मूर्यहास खडगकी सुगन्धलक्ष्मणकोई लक्ष्मण पाश्चर्यको प्राप्तभया
और कार्य तज सीधाशीघ्रही बांसकी ओर अाया सिंहसमान निर्भय दखताभयावृत्तोंकरभाछादितमहा विषम स्थल जहां बलोंके समूह अनेक जाल ऊंचे पाषाण वहां मध्यमें समभूमि सुन्दर क्षेत्र श्री विधि त्ररथ मुनि का निर्वाण क्षेत्र मुबर्णके कमलोंसे पूजित उसके मध्य एक बांसोंका बीडा उस के ऊपर खडग प्राय रहा है सो उसकी किरणके समूहसे बांसोंका बीडा प्रकाशरूपहोयरहाहै सो लक्षमण ने आश्चर्य को पाय निसंक होय खड्ग लिया और उस की तीक्ष्णता जानने के अर्थ बांस के नीडापर वाहिया सो संबूक सहित बांस का बीड़ा कट गया और खडग के रक्षकसहस्रों देव लक्षमणके हाथ में खडग पाया जान कहते भए तुम हमारे स्वामी हो ऐसा कह नमस्कार कर पूजते भए ।
अथानन्तर लक्षमण को बहत बेर लगी जान रामचन्द्र सीता से कहतेभए लक्षमण कहां गया | हे भद्र जटायु तू उड़ कर देख लक्षमण आवे है तब सीता बोली हे नाथ वह लक्षमण पाया केसर कर
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