Book Title: Padmapuran Bhasha
Author(s): Digambar Jain Granth Pracharak Pustakalay
Publisher: Digambar Jain Granth Pracharak Pustakalay
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पद्य
॥५१४॥
सुन्दर पक्षी श्रावक के व्रत घरे महास्वाद संयुक्त भोजन करता भया। महाभाग्य पक्षी के जो श्रीराम । की संगति पाई। रामके अनुग्रह से अनेकचर्चाधार दृबती महाश्रद्धानी भया श्रीराम इसे अति लडावें । चन्दनकर चर्चित है अंग जिसका स्वर्ण की किंकिणी कर मण्डित रत्नकी किरणों करशोभित है शरीर जिसका उसके शरीर में रत्न हेमकर उपजी किरणों की जटा इसलिए इसका नाम श्रीराम ने जटाय धरा।। राम लक्ष्मण सीता को यह अति प्रिय, जीती है हंस की चाल जिस ने महा सुन्दर मनोहर चेष्टा को । घरे राम का मन माहता भया, उसी बनके और जे पक्षी वे देखकर आश्चर्य को प्राप्त भये यह व्रती । तीनों संध्या विष सीता के साथ भक्तिकर नमीभूत हुअाअरहन्त सिद्ध साधुओंकी बन्दना करे। महादया वान जानकी जटायु पक्षी पर अतिकृपाकर सावधान भई सदा इसकी रक्षा करे । कैसी है जानकी जिनधर्म से है अनुराग जिसका वह पक्षी महा शुद्ध अमृत समान फल और महा पवित्र सोधा अन्न निर्मल छाना जल इत्यादि शुभ वस्तु का आहार करता भया । जब जनक की पुत्री सीता ताल बजावे
और रामलक्षमण दोनों भाई तालके अनुसार तानलाचे तवयह जटायुं पक्षी रवि समानहै कान्ति जिसका परम हर्षित भया ताल और तान के अनुसार नृत्य करे ॥ इति इकतालीसवां पर्व संपूर्णम् ॥ __अथानन्तर पात्र दान के प्रभाव करराम लक्षमण सीता इसलोक में रत्नहेमादि सम्पदाकर युक्त भए । एक सुवर्णमई रत्नजड़ित अनेक रचना कर सुन्दर जिसके मनोहर स्तंभ रमणीक वाड बीच विराजवे । का सुन्दर स्थानक और जिसके मोतियोंकी माला लम्बे सुन्दर झालरी सुगन्ध चन्दन करपरादि कर । मण्डित जोकि सेज़ प्रासन वादित्र वस्त्र सर्व सुगन्ध कर पूरित ऐसा एक विमान समान अद्भुत रथ ।
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