Book Title: Padmapuran Bhasha
Author(s): Digambar Jain Granth Pracharak Pustakalay
Publisher: Digambar Jain Granth Pracharak Pustakalay
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पन
नाना प्रकार के तृणां कर पूर्ण है कहीं एक महा सुन्दर है जहां भय रहित मृगों के समूह विचरे हैं कहूं यक महा भयंकर अति गहन है जैसे महाराजों का राज्य अति सुन्दर है तथापिदुष्टोंको भयंकर है और कहीं इक महामदोन्मत्त गजराज बृक्षों को उखाड़े है जैसे मानी पुरुष धर्मरूप बृक्षको उखाडे है कहूं इक नवीन वृक्षों के महासुगंध समूह पर भ्रमर गुंजार करे हैं जैसे दातावों के निकट याचकावें किसी और वन लाल होय रहाहै काहू और श्वेत काहोर पीत काहू ठौर हरित काहू ठौर श्याम काहूठौर चञ्चल काहू ठौर निश्चल काह ठौर शब्द सहित काह गैर शब्दरहित काहू ठौर गहन काहू ठौर विग्ले वृक्ष काह और सुभग काह गैर दुर्भग काहू और विरस काहू और सुरस काह और सम काहू और विषम काहूं ठौर तरुण काहूं और वृक्षवृद्धि इस भांति नाना विधि भासे है यह दण्डकनामा बन विचित्र गति लिये है जैसे कर्मों का प्रपंच विचित्रं गति लिये है, हे जनकसुता जो जिन धर्मको प्राप्त भए हैं वेही यहां कर्म प्रपंच से निवृत्त होय, निर्वाण को प्राप्त होय हैं जीवदयो समान कोई धर्म नहीं जो आप समान पर जीवों को जान सर्व जीवों की दया करें वेई भवसागर से तिरें यह दण्डक नामा पर्वत जिसके शिखर आकाशसों लगरहे हैं उस को नाम यह दण्डक बन कहिये है इस गिरि के ऊंचे शिखर हैं और अनेक धातुकर भराहै जहां अनेक रंगों से आकाश नाना रंग होय रहा है पर्वत में नाना प्रकार की ओषधी हैं कैयक ऐसी जड़ी हैं जे दीपक समान प्रकाश रूप अंधकार को हरें तिनको पवन का भय नहीं पवन में प्रज्वलित और इस गिरिसे नीझरने झरे हैं जिनका सुन्दर शब्द होय है जिनके छांटों की वन्द मोतियों की प्रभा को धरे हैं इस गिरि के स्थानक कैयक उज्ज्वल कैयक नील कईएक पारक्त दीखे हैं और अत्यंत सुन्दरहें सूर्य की किरण गिरिक शिखर |
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