________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
पन
नाना प्रकार के तृणां कर पूर्ण है कहीं एक महा सुन्दर है जहां भय रहित मृगों के समूह विचरे हैं कहूं यक महा भयंकर अति गहन है जैसे महाराजों का राज्य अति सुन्दर है तथापिदुष्टोंको भयंकर है और कहीं इक महामदोन्मत्त गजराज बृक्षों को उखाड़े है जैसे मानी पुरुष धर्मरूप बृक्षको उखाडे है कहूं इक नवीन वृक्षों के महासुगंध समूह पर भ्रमर गुंजार करे हैं जैसे दातावों के निकट याचकावें किसी और वन लाल होय रहाहै काहू और श्वेत काहोर पीत काहू ठौर हरित काहू ठौर श्याम काहूठौर चञ्चल काहू ठौर निश्चल काह ठौर शब्द सहित काह गैर शब्दरहित काहू ठौर गहन काहू ठौर विग्ले वृक्ष काह और सुभग काह गैर दुर्भग काहू और विरस काहू और सुरस काह और सम काहू और विषम काहूं ठौर तरुण काहूं और वृक्षवृद्धि इस भांति नाना विधि भासे है यह दण्डकनामा बन विचित्र गति लिये है जैसे कर्मों का प्रपंच विचित्रं गति लिये है, हे जनकसुता जो जिन धर्मको प्राप्त भए हैं वेही यहां कर्म प्रपंच से निवृत्त होय, निर्वाण को प्राप्त होय हैं जीवदयो समान कोई धर्म नहीं जो आप समान पर जीवों को जान सर्व जीवों की दया करें वेई भवसागर से तिरें यह दण्डक नामा पर्वत जिसके शिखर आकाशसों लगरहे हैं उस को नाम यह दण्डक बन कहिये है इस गिरि के ऊंचे शिखर हैं और अनेक धातुकर भराहै जहां अनेक रंगों से आकाश नाना रंग होय रहा है पर्वत में नाना प्रकार की ओषधी हैं कैयक ऐसी जड़ी हैं जे दीपक समान प्रकाश रूप अंधकार को हरें तिनको पवन का भय नहीं पवन में प्रज्वलित और इस गिरिसे नीझरने झरे हैं जिनका सुन्दर शब्द होय है जिनके छांटों की वन्द मोतियों की प्रभा को धरे हैं इस गिरि के स्थानक कैयक उज्ज्वल कैयक नील कईएक पारक्त दीखे हैं और अत्यंत सुन्दरहें सूर्य की किरण गिरिक शिखर |
For Private and Personal Use Only