Book Title: Padmapuran Bhasha
Author(s): Digambar Jain Granth Pracharak Pustakalay
Publisher: Digambar Jain Granth Pracharak Pustakalay
View full book text
________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
पद्म पुराच
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
कौनने दिया तैंने अपने नाशके निमित्त भरतसो विरोध उपजाया जियाचाहे तो महा विनय कर तिन को प्रसन्नकर दासहोप तिनके निकट जावो तेरीराणी बड़े बंशकी उपजी कामक्रीड़ा की भूमि विघवान होय तुझे मृत्युको प्राप्तभए सब आभूषण डार शोभा रहित होयगी जैसे चन्द्रमा बिना गात्र शोभारहित होय तेरा चित्त शुभ आया है सो चित्तको फेर भरतको नमस्कारकर हे नीच इसभांति न करेगा तो बार ही मराजायगा राजाचरण्यके पोता और दशरथ के पुत्र तिनके जीवते तू कैसे अयोध्याका राज्य चाहे है जैसे सूर्य प्रकाश होते चन्द्रमाका प्रकाश कैसेहोय जैसे पतंगदीप में पड़ भूवा चाहे है तैसे तू मरण चाहे
राजभर गरुड़समान महाबली तिनको तू सर्पसमान निर्बल बराबरी करे है यह बचन भरत की प्रशंसा और अपनी निन्दाके नृत्यकारिणी के मुख से सुन सकलसभा सहित अतिवीर्य क्रोधको प्राप्त भया लाल नेत्र किए जैसे समुद्रकी लहर उठे है तेसे सामन्त उठे और राजाने खडग हाथमें लिया उसी समय नृत्यकारिणी ने उचल हाथसों खडग खोल लिया और सिरके केश पकड बांध लिया और नृत्य कारणी तिवीर्य के पक्षी राजा तिनसो कहती भई जीवनेकी बांया राखो तो प्रतिवीर्यका पक्ष छोड भरतपै जावो भरतकी ही सेवा करो तब लोकों के मुख से ऐसी ध्वनि निकसी महा शोभायमान गुण वान भरत भूप जयवन्त होवे सूर्यसमान है तेज जिसका न्यायरूप किरणों के मंडलकर शोभित दशरथ के बंशरूप आकाशमै चन्द्रमासमान लोकको आनन्दकारी जिसका उदय लक्ष्मीरूप कुमुदनी विकास को प्राप्तहोय शत्रुवों के प्रतापसे रहित परम आश्चर्य को करती हुई अहो यह बडा आश्चर्य जिसकी नृत्यकारणी की यह चेष्टा जो ऐसे नृपतिको पकड लेय तो भरतकी शक्तिका क्या कहना इन्द्रको भी
For Private and Personal Use Only