Book Title: Padmapuran Bhasha
Author(s): Digambar Jain Granth Pracharak Pustakalay
Publisher: Digambar Jain Granth Pracharak Pustakalay
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पप
पुराण
से गही और तीजी चौथीदोनों कांख में गही सो चारों शक्तियोंको गहे लक्ष्मण ऐसा शोभे है मानो। चोदन्ता हस्ती है तब राजाने पांचवीं शक्ति चलाई सो दांतों से गही जैसे मृगराज मृगीको गहे तव देवों के समूह हर्षितहोय पुष्पवृष्टि करते भये और दुंदुभी वाजे बाजतेभए लक्षमण राजासे कहतेभए और है तो औरभी चला तब सकल लोक भयकर कंपायमान भए राजा लक्षमणकाअखंडवल देखाश्चर्यको प्राप्तभया लज्जो कर नीचा होय गया और जितपद्मा लक्षमणके रूप और चरित्र कर बैंची थकी आय ठगढ़ीभई वह कन्या सुन्दर वदनी मृगनयनी लक्ष्मण के समीप ऐसी शोभती भई जैसे इन्द्रके समीप शची होय जितपद्मा को देख लक्षमण का हृदय प्रसन्न भया महा संग्राम में भी जिसका चित्त स्थिर न होय सो इसके स्नेह से वशीभूत भया लक्षमण तत्काल विनयकर नमीभूत होय राजा को कहता भया हे माम हम तुम्हारे बालक हैं हमारा अपराध क्षमाकरो जे तुम सारिखे गम्भीर नरहें वे बालकोंकी अज्ञान चेष्टा कर और कुवचन कर विकारको नहीं प्राप्त होय हैं तब शत्रुदमन अति हर्षित होय हाथी सूंड समान अपनी भुजावोंकर कुमारसे मिला और कहताभया कि हे धोर में महा युद्ध में माते हाथियोंको क्षणमात्रमें जीतनहारा सो तैने जीता और बनके हस्ती पर्वतसनान तिनको मद रहित करनहारा जो में सो तुमने मुझे गर्वरहितकिया धन्य तुम्हारा पराक्रम धन्य तुम्हारोरूप धन्यतुम्हारेगुण धन्यतुम्हारी निगवंतामहा विनय वान अद्भुत चरित्र के घरणहारे तुमसे तुमही हो इस भांति राजाने लक्षमणके गुण सभा में वर्णन किये तब लक्ष्मण लज्जाकर नीचा होयगया।और राजाकी प्राज्ञाकर मेघकीध्वनि समानबादित्रों केशब्द सेवक करते भाऔर गानों को सानि मार्ण नगर के निणे ग्रानन्दता राजाने लक्षमण
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