Book Title: Padmapuran Bhasha
Author(s): Digambar Jain Granth Pracharak Pustakalay
Publisher: Digambar Jain Granth Pracharak Pustakalay
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पद्म
पुराण
को आहार दिया चरणी भैंसों का और वन की गायों का दुग्ध और छुहारे गिरी दाप नाना प्रकार के ६६. बनके धान्य सुन्दर घी मिष्टान्न इत्यादि मनोहर वस्तु विधिपूर्वक तिनसे मुनियोंको पारणा करावते भए
मुनि भोजन के स्वाद लोलुपता से रहित निरंतराय आहार करते भए जबराम ने अपनी स्री सहित भक्ति कर आहार दिया तब पंचाश्चर्य भए रत्नों की वर्षा पुष्पबृष्टि शीतल मन्दसुमन्ध पवन और दुंदुभी बाजे जयजयकार शब्द सो जिससमय राम के मुनियों का आहार भया उससमय बन में एक गृध्र पक्षी अपनी इच्छा कर वृक्ष पर तिष्ठे था सो अतिशय कर संयुक्त मुनियों को देख अपने पूर्वभव जानता भया कि कोई एक भव पहिले मुनुष्य था सो प्रमादी अविवेक कर जन्म निष्फल खोया तप संयम न किया धिकार मुझ मूढ बुधिको अब मैं पापके उदयसे खोटी योनि में चाय पड़ा क्या उपाय करूं मुझे मनुष्य भव में पापी जीवों ने भरमाया वे कहिने के मित्र और महाशत्रु सो उनके संग में धर्म रत्न तजा और गुरुवों के वचन उलंघ महापाप आचरा मैं मोहकर अन्ध अज्ञान तिमिर कर धर्म न पहिचाना अब अपने कर्म चितार उर में जलूं हूं बहुत चिंतवन कर क्या दुखके निवारने के अर्थ इन साधुवोंका शरण गहूं ये सर्व सुखके दाता इनसे मेरे परम अर्थकी प्राप्ति निश्चय सेती होयगी इस भान्ति पूर्वभवके चितारनेसे प्रथम तो परम शोकको प्राप्त भयाथा फिर साधुवों के दर्शन से तत्काल परम हर्षित होय अपनी दोनों पांखहलाय
सुवोंसे भरे हैं जिसके महा विनयकर मण्डित पक्षी वृक्ष के अग्रभाग से भूमिमें पड़ा सो महा मोटा पक्षी उसके पड़ने के शब्दसे हाथी और सिंहादि बनके जीव भयकर भाग गए और सीता भी आकुलचित्त भई कि देखो यह डीठ पक्षी मुनियोंके चरणों में कहांसे चायपड़ा कठोर शब्दकर घनाही निवारा परन्तु
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