Book Title: Padmapuran Bhasha
Author(s): Digambar Jain Granth Pracharak Pustakalay
Publisher: Digambar Jain Granth Pracharak Pustakalay
View full book text
________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobetirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
पदा
५६
अपने जीनेका भी पत्न तज पराया अहितकरें सो पापनीने अपने गुरुको कहा तुम निग्रन्थ मुनि का रूपकर मेरेमहलमें श्रावो और विकारचेष्टाकरी, तब उसने इसही भांतिकरी सो राजा यह वृतांतजान कर मुनियोंसेकोपभया और मंत्री आदि दुष्ट मिथ्या दृष्टिसदा मुनियोंकी निन्दाहीकरते अन्यभी और जे कर कर्मी मुनियोंके अहितु थे तिन्होने राजाको भरमाया सो पापी राजा मुनियों को पानी विषेपेलिवेकी
आज्ञा करताभया प्राश्चर्यसहित सर्व मुनि घानीमें पेले एक साधु बहिभूमिगया पीछे श्रावताथा सो किमी दयावानने कहा अनेक मुनि पापी राजाने यंत्रमें पेले हैं तुम भाग जावो तुम्हारा शरी धर्मका साधनहै सो अपने शरीस्की रक्षा करो तब यह समाचार सुन संघके मरणके शोककर चुभी है दुःख रूप शिला जिसके क्षण एक मजके स्तंभसमान निश्चल होय रहा फिर न सहा जाय ऐसा क्लेश । रूप भया सो मुनिरूप जोपर्वत उसकी समभावरूप गुफासे क्रोधरूप. केसरीसिंह निकसा जैसा बारक्त अशोकवृक्ष होय तैसे मुनिके रक्त नेत्र भए, तेजकर आकाश संध्याके रंगसमान होया गया कोप कर तप्तायमान जो मुनि उसके सर्व शरीर विषे. पसेवकी बून्द प्रकटभई फिर कालाग्नि समान प्रज्वलित अग्विपूतला निकसा सो धरती श्राकाश अग्निरूप होय गए, लोक हाहाकार करते मरणको प्राप्त भए ! जैसे बांसोंका वन बले तैसे देश भस्म होय गया न गजान अंतहपुर न पुरन ग्राम न पर्वतन नदीन बनान कोई प्राणी कुछभी देशमें नववा महाज्ञानगम्यके योगकर बहुत दिनों में मुनिने समभावरूप जो धम उपार्जाथा सो तत्कालको वरूप रिपुने हरा दंडक देशका दंडक राजा पापके प्रभावकर प्रलयभया औरदेश प्रलयमया सो अबयह दंडकवन कहावे है कैयकदिन तो यहां तृणभी न उपजा फिर घनकालविषेमुनियों
For Private and Personal Use Only