Book Title: Padmapuran Bhasha
Author(s): Digambar Jain Granth Pracharak Pustakalay
Publisher: Digambar Jain Granth Pracharak Pustakalay
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पुराख
रत्नत्रय का अाराधन कर समाधिसे प्राणतज स्वर्ग लोक गए और वह वसुभूति का जीवजो म्लेषभया ॥
था सोअनेक कुयोनियों में भ्रमणकर मनुष्यदेह पायतापसव्रतधरअज्ञान तपकरमरजोतिषी देवोंके विषे अग्निकेतु नामा करदेवभया और भरत क्षेत्रकेविषम अरिष्टपुरनगर जहांराजाप्रियवतमहा भोगी उसके दो। राणी महागुणवती एककनकप्रभा दूजीपद्मावती सोवे उदित मुदितके जीवस्वर्गसे चयकर पद्मावतीराणीके | रत्नस्थ विचित्ररथनामा पुत्रभए और कनकप्रभाके वह जोतिषीदेव चयकर अनुधरनामा पुत्रभया राजा प्रिय ब्रत पुत्रको राज्यदेय भगवानके चैत्यालयमें छह दिनका अनशन धार देह त्याग स्वर्गलोक गए।
अथानन्तर एक राजाकी पुत्री श्रीप्रभा लक्ष्मी समान सो रत्नरथने परणी उसकी अभिलाषा अनुधर के थी सो रत्नग्थसे अनुधरका पूर्व जन्म तो वैरही था फिर नया बैर उपजा सो अनुधर रत्नरथ की
थ्वी उजाड़ने लगा तब रत्नरथ और विचित्ररथ दोनों भाइयोन अनुधर को युद्ध में जीत देश से निकास दिया सो देशसे निकासनेसे और पूर्व बैरसे महाक्रोधको प्राप्तहोय जटा और बक्कलकाधारी तापसी भया विषवृक्ष समान कषाय विषका भरा और रत्नस्थ विचित्ररथ महातेजस्वी चिरकाल राज्य कर मुनि होय तपकर स्वर्गके विषे देवभए महा सुख भोग वहांसे चयकर सिद्धार्थ नगर के विषे राजा तेमंकर राणी विमला तिनके महा सुंदर देश भूषण कुलभूषण नामा पुत्र होतेभए सो विद्या पढ़ने के अर्थ घरमै उचित क्रीडा करते तिष्ठे उस समय एक सागरघोषनामा पंडित अनेक देशमें भूमणकरता पाया सो राजाने पंडितको बहुत अादरसे राखा और ये दोनों पुत्र पढनेको सौंपे सो महा विनयकर संयुक्त | सर्व कला सीखी. केवल एक विद्या गुरुको जाने या विद्याको जाने और कुटम्बमें काहूको न जाने।
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