Book Title: Padmapuran Bhasha
Author(s): Digambar Jain Granth Pracharak Pustakalay
Publisher: Digambar Jain Granth Pracharak Pustakalay
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पद्म पुराण
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राजा से पूछ तव वह द्वारपाल अपनी ठौर दूजे को राख श्राप गजा सो जाय विनती करताभया हे महा राज आपके दर्शन को एक महा रूपवान पुरुष आयाहै द्वारे तिष्ठे है नील कमल समानहे वर्ण जिसका
और कमल लोचन महा शोभायमान सौम्य शुभ मूर्ति है तब राजाने प्रधानकी और निरख अाज्ञा करी श्रावे तब द्वारपाल लक्षमण को राजाके समीप लेयगया सो समस्त सभा इस को अति सुन्दर देख हर्ष की वृद्धिको प्राप्त भई जैसे चन्द्रमाको देख समुद्रकी शोभा बृद्धिको प्राप्त होय राजा इसको प्रणाम रहित देदीप्यमान विकट स्वरूप देख कछु इक विकारको प्राप्त होय पूछता भया तुम कौन हो कौन अर्थ कहां से यहां आए हो तब लक्षमण वर्षाकाल के मैघ समान शब्द करते भए मैं राजा भरतका सेवकह पृथिवी के देखने की अभिलाषा से विचरूं तेरी पत्री का वृत्तान्त सुन यहां आया यह तेरी पुत्री महा दुष्ट मारणेवाली गाय है नहीं भग्न मए हैं मान रूपी सींग जिसके यह सर्वलोकोंको दुःखदायनी वर्ते है तब राजा शत्रुदमन ने कही मेरी शक्ति को जो सहार सके सो जितपद्माको बरे तब लक्षमण 'कहताभया तेरी एक शक्ति से मेरे क्या होय तू अपनी समस्त शक्ति से मेरे पंच शक्ति लगाय इस भान्ति राजाके और लक्षमण के विवाद भयो उस समय झरोखा से जितपद्मा लक्षमणको देख मोहित भई और हाथ जोड़ इशारा कर मने करतीभई कि शक्तिकी चोट मत खावो तब आप सैन करतेभए तू डरे मत इस भांति समस्या मेंही धीर्य बंधाया और राजा से कही क्यों कायर होय रहा है शक्ति चलाय अपनी शक्ति हमकोदिखा तब राजाने कही मूवा चाहे है तो झेल महाकोपकर प्रज्वलित अग्निसमान एक शक्ति चलाई सो लक्षमणने दाहिने करमें ग्रही जैसे गरुड सर्पको ग्रहे और दूसरी शक्ति दूसरे हाथ ।
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