Book Title: Padmapuran Bhasha
Author(s): Digambar Jain Granth Pracharak Pustakalay
Publisher: Digambar Jain Granth Pracharak Pustakalay
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|| प्रकार तैयार किए बार अपना निकटवर्ती जो द्वारपाल उसे भेजा सोजायकर सीतासहित रामकोप्रमाण कर कहताभया हे देव इस बस्त्र भवनके विषे तुम्हाराभाई तिष्ठे है और इस नगरके नाथने बहुत आदर से विनती करी है यहां छाया शीतल है और स्थान मनोहर सो पापकृपा करपधारें तो मार्ग का खेदनिवृत होवे तब आप सीता सहित पधारेजेसे चांदनी सहित चांदउद्योत करे कैसेआप मातेहाथी समानहै चाल जिनकी लक्ष्मण सहित नगरकाराजा दाही से देख उठकर सामने आया सीता सहित राम सिंहासन पर बिराजे राजा ने भारती उतार कर अर्घ दिए अतिसन्मान किया प्रापप्रसन्न होय स्नानकर भोजन किया सुगन्धलगाई फिर राजाने सबको विदाकिए ए चारहीरहे एकराजा तीनएराजानेसबको कहाकिमेरेपिता के पाससे इनकेहावसमाचार पाए हैं सो एकांतकी वार्ता है कोई श्रावने न पावे जो आवेगा उसे ही में मारूंगा बडे २ सामन्त बारे राखएकांत में इनकेागेलज्जा तज कन्यानेजो राजा का भेषधरा यासो तज अपना स्त्रीपदकारूप प्रकट दिखाया कैसीहै कन्या लज्जाकर नमीभूत मुखाजिसका और रूपकरमानों स्वर्ग की देवांगना है अयवा नागकुमारी है उसकीकांतिसे समस्त मन्दिर प्रकाशरूप होयगया मानों चन्द्रमा का उदय भया चन्द्रमा किरणोंसे मंडित है इसका मुखलज्जा और मुलकन कर मंडितहै मानों यह राजकन्या साचात लक्ष्मीही है कमलों के बनमें से प्रायतिष्ठी है अपनी लावण्यतारूप सागर में मानों मन्दिरको गर्क कियाहै जिसकी युति प्रागे रस्न और कंचन दुतिरहित भासे, जिसके स्तन युगुलसे कांतिरूप जलकी तरंगोंसमान त्रिवलीशोभेहै और जैसे मेघपटल को भेद निशाकर निकसे से बखको भेद अंग की ज्योति फैल रही है और अत्यन्तचिकने मुगन्ध कारे बांके पतले लम्बेकेश
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