Book Title: Padmapuran Bhasha
Author(s): Digambar Jain Granth Pracharak Pustakalay
Publisher: Digambar Jain Granth Pracharak Pustakalay
View full book text
________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
ख़ुदी राजा का भय और प्रीति कर संयुक्त है मन जिसका ऐसे दौड़े मानो पवन के बालक हैं तब क पुरस्क एक इसतरफ दौड़े आये बनमालाको बनमें राम लक्ष्मणके समीप बैठी देख बहुत हर्षित होय जाय कर
प्र
CH
राजा पृथिवीघर का बाई दई और कहले भये कि हे देव जिनके पावनेका बहुत यत्न करिये तोभी न मिलें वे सहजी आए हैं मभा तरें नगर में महा निषि आई बिना बादल आकाश से वृष्टिभई क्षेत्रमें विना बाई घान जगा तुम्हारा जसाई लक्ष्मण नगर के निकट तिष्ठे है जिसने बनमाला प्राण त्याग करती बचाई और राम तुम्हारे पस्महित सीता सहित विराजे हैं जैसे सूची सहित इन्द्र विराजें ये वचन सृजा सेवकों के सुनकर महा हर्षित होय चणे एक मूर्बित होयगया फिर परम आनन्दको प्राप्तहोय सेवकों को बहुत धनदिया और मनमें विचारता भया मेरी पुत्रीका मनोरथ सिद्धभया जीवों के धन की प्राप्ति और इष्टका समागम औरभी सुख के कारण पुण्यके मोम से - होयहैं जो वस्तु सैकड़ों योजन दूर और श्रवण में वे सभी पुण्याधिकारी के क्षणमात्र में प्राप्त होय है और जे प्राणी दुःखके भोक्ता पुण्यहीन हैं तिनके हाथ से इष्टवस्तुविलाय जाय है पर्वत के मस्तक पर तथा बन में सागर में पंथ में पुण्याविकारियों के इष्ट वस्तु का समागम होय है ऐसा मन में चिंतवन कर स्त्री से समस्त वृतान्त कहा, स्त्री बारंबार पूछे हैं यह जामे मानोंस्वप्न हीहै, फिर रामके अघर समान आरक्तसूयका उदयभया तव राजाप्रेमका
सर्व परिवार सहित हाथी पर चढ़कर परम कांति संयुक्त राम से मिलने चला और बनमाला की माता आप पुत्रियों सहित पालकी पर चढ़ कर चली सो राजा दूर ही से श्रीराम का स्थानक देख कर फूल गये हैं नेत्र कमल जिसके हाथी से उतर समीप याया श्रीराम और लक्ष्मण से मिला और उसकी
For Private and Personal Use Only