Book Title: Padmapuran Bhasha
Author(s): Digambar Jain Granth Pracharak Pustakalay
Publisher: Digambar Jain Granth Pracharak Pustakalay
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पद्म वीय पाया है और राजा वांम और सिंहस्थ ये दोनों हमारे मामा महा बलवान बड़ी सेनासे आएहैं और Ham| वत्सदेशका स्वामी मोरदत्त अनेक पयादे अनेक स्थ अनेक हाथी अनेक घोड़ोंसे युक्त अायाहै और राजा
पोष्टल सौवीर सुमेरु सारिखे अचल प्रबल सेनासे पाये हैं ये राजे महा पराक्रमी पृथिवीपर प्रसिद्ध देवों सारिखे दस अक्षोहिणी दल सहित आये हैं इतने राजावों सहित में बड़े कटकसे अयोध्याके राजा भरत पर चढ़ाहूं सो तेरे अोयवेकी वोट देखें हूं इसलिये आज्ञापत्र पहुंचते प्रमाण पयानकर शीघ अाइयो किसी कार्यकर विलम्ब न करियो जैसे किसान वांको चाहे तैसे में तेरे अागमन को चाहूंहूं इसभांति पत्र के समाचार लेखकने बांचे तब पृथिवीधर ने कछ कहने का उद्यम किया उससे पहिले लक्षमण बोले अरे दूत भरतके और अतिवीर्यके विरोध कौन कारणसे भया तब वह वायुगत नाम दूत कहताभया में सब बातोंका मरमी हूं सब चरित्र जोनहूं तब लक्षमण बोने हमारे सुनने की इच्छा है उलने कही आपको सुननेकी इच्छा है तो सुनो एक श्रुतिवृद्ध नामा दूत हमारे राजा अतिवीर्यने भरतपर भेजा सो जमकर कहताभया इन्द्र मुल्य राजा अतिवीर्य का में दूतहूं प्रणाम करे हैं समस्त नरेन्द्र जिसको न्याय के थापने में महा बुद्धिवान सो पुरुषों में सिंह समान जिसके भय से अरि रूप मृग निद्रा नहीं करे हैं इसके यह पृथिवी वनिता समान है कैसी है पृथिवी चार तरफ के समुद्र सोई हैं कटिमेखलाजिसके जैसे परणी स्त्री आज्ञा में होय तैसे समस्त पृथिवी आज्ञा केवश है सो पृथिवी पति महा प्रबल मेरे मुख होय तुमको आज्ञा करे हैं कि हे भरत कि हे भरत शीघ आय कर मेरी सेवा करोअथवा अयोध्या तज समुद्र के पार जावो ये वचन सुन शत्रुधन महा क्रोधरूष दावानल समान प्रज्वलित होय कहताभया अरे दूत तुझऐसे
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