Book Title: Padmapuran Bhasha
Author(s): Digambar Jain Granth Pracharak Pustakalay
Publisher: Digambar Jain Granth Pracharak Pustakalay
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पन
पुराण
॥५३३॥
से मंडित भरत के ऊपर जाने का उद्यमी भया है यह समाचार सुन श्रीरामचन्द अपनी ललाट दूज के चन्द्रमा समान वक्रकर पृथिवीघरसे कहतेभये कि अतिवीर्य को भरतसे ऐसाकरना उचितही है क्योंकि जिस ने पिता समान बड़े भाई का अनादर किया। तब राजा पृथिवीधर ने राम से कही वह दुष्ट है हमप्रवल जान सेवा करे हैं, तब मंत्रकर अतिवीर्य को जुवाब लिखा कि मैं कागद के पीछे ही प्रावूहूं और दूतको विदा किया फिर श्रीराम से कहताभया अतिवीर्य महाप्रचण्डहै इसलिये मैं जाउंहूं तब श्रीरामने कही तुम तो | यहां ही रहो और मैं तुम्हारे पुत्र को और तुम्हारे जवाई लक्षमण को ले अतिवीर्य के समीप जावूगा ऐसा
कहकर स्थपर चढ़ बड़ी सेना सहित पृथिवीधर के पुत्र को लारलेय सीताऔर लक्षमण सहित नन्द्यावर्त । नगरी को चले सोशीघ गमनकर नगरके निकट जायपहुंचे वहां पृथिवीधरके पुत्र सहित स्नोन भोनज
कर राम लक्षमण और सीता ये तीनो मंत्र करतेभए जानकी श्रीगमसे कहतीभई । हे नाथ यद्यपि मेरे। il कहिवे का अधिकार नहीं जैसे सूर्य के प्रकाशहोते नक्षत्र का उद्योत नहीं तथापि हे देव हितकी वांछाकर । । में कछ इककहूं हूं जैसे वांसों से मोती लेना तैसे हम सारिखों से भी हितकी बातलेनी (कभीयक किसी | एक वास के बीड़ेमें मोती निपजे हैं)। हे नाथ यह अतिवीर्य्य महासेनाका स्वामी क्रूरकर्मी भरतकर कैसे
जीता जाय इसलिये इसके जीतने का उपाय शीघ्र चिन्तवना तुमसे और लक्षमणसे कोईकार्य असाध्य नहीं तव लक्षमणबोले । हेदेवी यह क्याकहो हो आज अथवा प्रभातइस अणुवीर्यको मेरेकर हताहीजानों श्रीरामके चरणारविन्दकी जो रजकर पवित्रहै सिरमेरा मेरे श्रागे देवभी टिक नहीं सकें मनुष्य क्षुद्रवीय्य की तो क्याबात जबतक सूर्यअस्त न होय उससे पहिलेही इसक्षुद्रवीर्य को मूवाही देखियो यहलक्षमण
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