Book Title: Padmapuran Bhasha
Author(s): Digambar Jain Granth Pracharak Pustakalay
Publisher: Digambar Jain Granth Pracharak Pustakalay
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पुराण
राणी सीता के पायन लागी और कुशल पूछती भईबीन बांसुरी मृदंगादिक के शब्द भए बन्दीजन विरद बखानते भए बड़ा उत्सव भया राजा ने लोकों को बहुत दान दिया नृत्य होता भया दशों दिशा नोद कर शब्दायमान होती भई श्रीराम लक्ष्मण को स्नान भोजन कराया फिर घोडे हाथी रथ उन पर चढ़े अनेक सामंत और हिरण समान कूदते पयादेउन सहित रामलक्ष्मणने हाथी पर चढे हुये पुर में प्रवेश किय, राजाने नगर उछाला महा चतुर मागध विरद बखाने हैं मंगल शब्द करे हैं राम लक्षमण ने अमोलिक वस्त्र पहरे हार कर विराजे है वक्षस्थल जिनका, मलियागिरि के चन्दन से लिप्त है अंग जिनका नाना प्रकार के रत्नों की किरणो से इन्द्र धनुष होय रहा है दोनों भाई चांद सूर्य सारिखे, नहीं वरणे जावें हैं गुण जिनके, सौधर्म ईशान सारिखे जानकी सहीत लोकों को आश्चर्य उपजावते राजमन्दिर में पधारे श्रेष्ठ मालाधरे सुगंध कर गुंजार करे हैं भ्रमर जिनपर महा विनयवान् चन्द्रवदन इनको देख लोकमोहित भए कुबेर का सा कियो जो बह सुन्दर नगर वहां अपनी इच्छा से परम भोग भोगते भए इस भांति सुकृत में है चित्त जिनका महागहन बन में प्राप्त भए भी परम विलासको अनुभवे हैं सूर्य समान है कांति जिनकी वे पापरूप तिमीर को हरे हैं निज पदार्थ के लाभसे आनन्दरूपहें ॥ इति छत्तीसवां पर्वसंपूर्णम्॥
अथानन्तर एक दिन श्री राम सुख से विराजे थे, और पृथिवीधर भी समीप बैठा था उस समय एक पुरुष दूर का चला महा खेद खिन्न आय कर नमीभूत होय पत्र देताभया सोराजा पृथिवीधर ने पत्र लेप कर लेखक को सौंपा लेखक ने खोलकर राजा के निकट बांचा उस में इस भान्ति लिखाथा कि इन्द्र समान है उत्कृष्ट प्रभाव जिस का महालक्षगीवान नमे हैं अनेक सजा जिन को श्री नन्द्यवर्त नगर का
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