SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 540
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir www.kobatirth.org पुराण राणी सीता के पायन लागी और कुशल पूछती भईबीन बांसुरी मृदंगादिक के शब्द भए बन्दीजन विरद बखानते भए बड़ा उत्सव भया राजा ने लोकों को बहुत दान दिया नृत्य होता भया दशों दिशा नोद कर शब्दायमान होती भई श्रीराम लक्ष्मण को स्नान भोजन कराया फिर घोडे हाथी रथ उन पर चढ़े अनेक सामंत और हिरण समान कूदते पयादेउन सहित रामलक्ष्मणने हाथी पर चढे हुये पुर में प्रवेश किय, राजाने नगर उछाला महा चतुर मागध विरद बखाने हैं मंगल शब्द करे हैं राम लक्षमण ने अमोलिक वस्त्र पहरे हार कर विराजे है वक्षस्थल जिनका, मलियागिरि के चन्दन से लिप्त है अंग जिनका नाना प्रकार के रत्नों की किरणो से इन्द्र धनुष होय रहा है दोनों भाई चांद सूर्य सारिखे, नहीं वरणे जावें हैं गुण जिनके, सौधर्म ईशान सारिखे जानकी सहीत लोकों को आश्चर्य उपजावते राजमन्दिर में पधारे श्रेष्ठ मालाधरे सुगंध कर गुंजार करे हैं भ्रमर जिनपर महा विनयवान् चन्द्रवदन इनको देख लोकमोहित भए कुबेर का सा कियो जो बह सुन्दर नगर वहां अपनी इच्छा से परम भोग भोगते भए इस भांति सुकृत में है चित्त जिनका महागहन बन में प्राप्त भए भी परम विलासको अनुभवे हैं सूर्य समान है कांति जिनकी वे पापरूप तिमीर को हरे हैं निज पदार्थ के लाभसे आनन्दरूपहें ॥ इति छत्तीसवां पर्वसंपूर्णम्॥ अथानन्तर एक दिन श्री राम सुख से विराजे थे, और पृथिवीधर भी समीप बैठा था उस समय एक पुरुष दूर का चला महा खेद खिन्न आय कर नमीभूत होय पत्र देताभया सोराजा पृथिवीधर ने पत्र लेप कर लेखक को सौंपा लेखक ने खोलकर राजा के निकट बांचा उस में इस भान्ति लिखाथा कि इन्द्र समान है उत्कृष्ट प्रभाव जिस का महालक्षगीवान नमे हैं अनेक सजा जिन को श्री नन्द्यवर्त नगर का For Private and Personal Use Only
SR No.020522
Book TitlePadmapuran Bhasha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDigambar Jain Granth Pracharak Pustakalay
PublisherDigambar Jain Granth Pracharak Pustakalay
Publication Year
Total Pages1087
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size33 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy