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पद्म पुरागा ॥५३॥
स्वामी महाप्रबल परोक्रमको धारी सुमेरुपर्वतसा अचल प्रसिद्ध शस्त्रशास्त्र में प्रवीण सवराजावांका राजा महाराजाधिराज प्रताप कर वश किये हैं शत्रु और मोहित करी है सकल पृथिवी जिसने सूर्य समान महो बलवान् समस्त कर्तव्यों में कुशल महानीतिवान् गुणों से बिराजमान श्रीमान् पृथिवी का नाथ महाराजेंद्र अति बीर्य सोविजय नगरमें पृथिवीधर को कुशल क्षेम प्रश्नपूर्वक श्राज्ञा करे है कि जे पृथिवीपर सामन्त हैं। भण्डार सहित और सर्व सेना सहित मेरे निकट प्रबरते हैं आर्य खण्ड के और मलेच्छ खण्ड के चतुरंग सेना सहित नाना प्रकार के शस्रों के धरण हारे मेरी आज्ञाको शिरपरधारे हैं अञ्जनगिरिसारिखे अाठसै हाथे और पवनके पुत्रसम तीन हजार तुरंग अनेक रथ अनेक पयादे तिन सहित महा पराक्रमका धारी महा तेजस्वी मेरे गुणों से बैंचा है मन जिसका ऐसाराजा विजय शार्दूल
आया है और अंग देशके राजा मृगध्वज रणोमि कलभ केशरी यह प्रत्येक पांच पांचहजार तुरंग और छैनो हाथी और स्थ पयादे तिन सहित आये हैं महाउत्साह के धारी महा न्यायमें प्रवीण बुद्धि जिन | की और पंचालदेशका राजा पौढ़ परम प्रतापको धरता न्यायशास्त्र में प्रवीण अनेक प्रचण्ड बलको उत्साह | रूप करता हजार हाथी और सातहजार तुरंगों से और रथ पयादों से युक्त हमारे पास आया है और मगध देशका राजा सुकेश बड़ी सेना से आया है अनेक राजावों सहित जैसे सैकड़ों नदीयों के प्रवाहों को लिये रेवाका प्रवाह ससुद्र में श्रावे तैसे उसके संग काली घटा समान आठ हजार हाथी अनेक रथ
और तुरंगोंके समूह हैं अप वज्रको आयुध धारे हैं और म्लेलोंके अधिपति सुभद्र मुनिभद्र साधुभद्र नंदन । इत्यादि राजा मेरे समीप आये हैं वज्रधर समान और नहीं निवारोजाय पराक्रम जिसका ऐसा राजा सिंह
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