Book Title: Padmapuran Bhasha
Author(s): Digambar Jain Granth Pracharak Pustakalay
Publisher: Digambar Jain Granth Pracharak Pustakalay
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पुराव
१५१२॥
देख श्री रामचन्द्र दयारूप वेल कर बेटे कल्पवृच समान कहते भए उठ उठ डरैमत वालखिल्य को छोड़ तत्काल यहां मंगाय और उसका भावकारी मंत्री होय कर रहो म्लेलों की क्रिया तज पापकर्म से निवृत्त हो दश की रक्षा कर इस भान्ति किये से तेरी कुशल है तब उसने कही हे प्रभो ! ऐसे ही करूंगा यह वीनती कर ग्राप गया और महारथ का पुत्र जोवालखिल्य उसे बोड़ा बहुत विनय संयुक्त उस के तैलादि मर्दन कर स्नान भोजन कराय आभूपण पहिराय स्थपर चढ़ाय श्री रामचन्द्रके समीप लेजाने को उद्यम किया, तब बालखिल्य. परम प्रश्चिर्य को प्राप्त होय विचारता भया कहां यह म्लेय. महाशत्रु कुफमी.. अत्यन्त निर्दयी और मेरा एता विनय करे है सोजानिये है कि श्राज मुझे किसी की भेद देंगे भव मेस जीवना नहीं यह विचार सो गलखिल्य सचिन्त चला मागे राम लक्ष्मण को देख परम हर्षित भया स्थ। से उतर आय नमस्कार किया और कहता भया हे नाथ! मेरे पुण्य के योगसे माप पधारे मुझे धन । से छुड़ाया श्राप महासुन्दर इन्द्र तुल्य पुरुष होतब रामने माहाकरी तू अपने स्थानको जो कुटुंब से मिल तब बालखिल्य रामको प्रणाम कररौद्रभूतसहित अपनेनगरगयासोबालखिल्यको भाया सुनकर कल्याण माला महाविभूति सहितसन्मुखमाया पौरनगर में महा उत्साह भया राजाने राजकुमार को उस्से लगाय अपनी असवारी में चढ़ाय नगर में प्रवेश किया राणी पृथिवी के हर्ष से रोमाञ्च होय पाये जैसाागे शरीर
सुन्दरथा तैसा पति के पाये भया सिंहोदर को आदि देय बालखिल्य के हितकारी सब ही प्रसन्न भए | और कल्याणमाला पुत्री ने एते दिवस पुरुष का भेष कर राज थाम्भा था सो इस बात का सबको आश्चर्य । भयायह कथा राजा श्रेणिकसे गौतम स्वामीकहे हैं हे नराधिप वह रौद्रभूत परद्रव्यका हरणहारा अनेक देशोंका
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