Book Title: Padmapuran Bhasha
Author(s): Digambar Jain Granth Pracharak Pustakalay
Publisher: Digambar Jain Granth Pracharak Pustakalay
View full book text
________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobetirth.org
Acharya Shri Kalassagarsuri Gyanmandir
1५०४.
की निरन्तर सेवा करूंगा और राणी नमस्कारकर पतिकी भीख मांगतीभई और सीतासतीके पायन परी कहती भई हे देवी हे देवी हे शोभने तुम स्त्रियोंकी शिरोमणिहो हमारी करुणाकरोतब श्रीरामासिंहोदरको कहते भए मानो मेघगाजे अहोसिंहोदर तुझे जोबजकर्णकहे सो कर इसी बातसे तेरा जीतब्यहै और वात कर नहीं इस भांति सिंहोदरको रामकी माज्ञाभई उसी समयजे वजकर्णके हितकारीथे तिनकोभेजबजू कर्णको बुलाया सोपरिताहत चैत्यालयमें पाया तीन प्रदक्षिणादेय भगवानको नमस्कारकरचंद्रप्रभु | स्वामीकी अत्यन्तस्तुतिकर रोमांचहोय आए फिरबह बिमयवान दोनों भाइयोंके पास आया स्तुतिकर शरीरकी आरोग्ता पूंछता भया और सीता जीकी कुशल प्रछी तब श्रीराम अत्यन्त मधुर ध्वनि कर बजकर्ण को कहते भए हे भव्य तेरी कुशल से हमारे कुशल है इस भाति बजकर्णकी और श्रीरामकी बार्ता होयहें तवही सुन्दर भेष धरे विद्युदंग माया श्रीराम लक्ष्मण की स्तुति कर बजकर्ता के समीप बैठा सर्वसभा में विद्युदंग की प्रशंशा भई कि यह बजकर्णका परम मित्र है फिर श्री रामचन्द्र प्रसन्न होय बजकर्ण से कहते भए तेरी श्रद्धा महामशन्सा योग्य है कुबुद्धियों के उत्पात कर तेरी बुद्धि रंच मात्र भी न डिगी जैसे पवन के समूह से सुमेरु की चूलिका न डिगे मुझे देखकर तेरा मस्तक न नया सो धन्यहै तेरीसम्मक्तकी दृढ़ताजेशुद्धत्तस्वके अनुभवी पुरुषहें तिनकी यही रीति है कि जगतकर पूज्य जे जिनेदतिन को प्रणाम करें फिर मस्तक कौन को नवावें मकरंद रसका श्रास्वादकरणहाराजोभ्रमर सो गर्धव(गधा)कीपूछपै कैसे गुंजार करे तू बुद्धिमान है धन्यहै निकटभब्य है चन्द्रमासे भी उज्जवलकीर्ति तेरी पृथिवीमें विस्तरी है इस भांति वर्जकर्णके सांचे गुण श्रीरामचन्द्रने वर्णन कीए तब वह लज्जावान् |
For Private and Personal Use Only