Book Title: Padmapuran Bhasha
Author(s): Digambar Jain Granth Pracharak Pustakalay
Publisher: Digambar Jain Granth Pracharak Pustakalay
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पद्म होय नीचा मुख कर रहा श्रीरघुनाथ से.कहता भया हे नाथमो पर यह मापदा तो बहुत पड़ीथी परन्तु तुम पुराव
सारीखे सज्जन जगतके हितु मेरे सहाई भए मेरे भाग्य से तुम पुरुषोत्तम पधारे इस भांति वजकर्ण ने कहीतबलक्ष्मण बोले तेरीबांचा जो होय सो करें, तब वज्रकर्ण ने कही तुम सारिखे उपकारी पुरुष पोयकर मुझे इस जगत विषे कछु दुर्लभ नहीं मेरी यही बीनती है में जिनधर्मो हूं मेरे तृणमात्र को भी पीडाकी अभिलाषा नहीं और यह सिंहोदर तो मेरा स्वामी है इसलिये इसे छोडो ये वचन जब वज्रकर्ण ने कहे तब सब के मुख से धन्य धन्य यह ध्वनि होती भई कि देखो यह ऐसा उत्तम पुरुष है देष प्राप्तिभए भी पराया मला ही चाहे है में सज्जन पुरुष हैं वे दुर्जनोंका भी उपकारकरें और आपका उपकार करें उनका तो करें ही करेलचमणने वजकर्णको कही जो तुमकहोगेसो ही होयगासिंहोदरकोछोड़ा और वजकर्णकाऔरसिहोदर का परस्पर हाथ पकड़ाया परम मित्रकीए वजकर्णको सिंहोदर का आधा राज्य दिलवायाऔर जोमाललूटाथा सोभी दिवाया और देश पनसेना आधार विभागकरदिया वजकर्णके प्रसादकर विद्युदंग सेनापति भया
और वज्रकर्ण ने राम लक्षमणकी बहुत स्तुति करी अपनी पाठपुत्रियों की लक्षमण से सगाई करीकैसी हैं वे कन्या महाविनयवन्ती सुन्दर भेष सुन्दर श्राभूषण को घरे भो राजा सिंहोदर को आदि देय राजाओं की परम कन्या तीन सौ लक्षमण को दई सिंहोदर औवजकर्ण लक्षमण से कहते भये आप अंगीकार करें तब लचमण बोले विवाह तालब करूंगा जब अपने भजकरराज्य स्थान जमाऊंगा औरश्रीरामतिनसे कहते भये कि हमारे प्रयतक देश नहीं है तातने राज भरतको दियाहैइसलिये चन्दनगिरीके समीप तथा दक्षिणके समुद्र के समीप स्थानक करेंगे सब अपनी दोनों मातावों को लेने को में श्राऊंगा अथवा लक्षमण आवेगा
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