Book Title: Padmapuran Bhasha
Author(s): Digambar Jain Granth Pracharak Pustakalay
Publisher: Digambar Jain Granth Pracharak Pustakalay
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पद्म
पुराण
गए यह युद्ध में क्रीडाका करणहारा कोई देवहै तथा विद्यावर काल है क वायुहै यह महाप्रचंड सब सेनाको जीतकर सिंहोदरको हाथीसे उतार गले में बस्त्र डारबांध लिए जाय है जैसे बलद को ५०३५ बांध धनी अपने घर लेजाय यह वचन बज्रकणके योधा वज्रकर्ण से कहताभया तब वह कहते भए हे
सुभट हो बहुत चिन्ताकर क्या धर्मके प्रसाद से सब शांति होयगी और दशांग नगरकी स्त्री महलों के ऊपर बैठी परस्पर वार्ता करे हैं रे सखी देखो इस सुभ की अद्भुत चेष्टा जो एक पुरुष अकेला नरेन्द्र haraj ली जाय है अहो धन्य इसका रूप धन्य इसकी कांति धन्य इसकी शक्ति यह कोई प्रति शयका धारी पुरुशोत्तम है धन्य हैं वे स्त्री जिनका यह जगतीश्वर पति हुआ है तथा होयगा थोर सिंहोदर की पटरानी बाल तथा वृद्धोंसहित रोचती हुई लक्ष्मणके पांवो पड़ी और कहती भई हे देव इसे छोड़ देवो हमे भरतारकी भीख देवो अब जो तुम्हारी श्राज्ञा होयगी सो यह करेगा तब कहते भए यह आगे बडा वृक्ष है उससे बांध इसे लटकाऊंगा तब इसकी राणी हाथ जोड बहुत विनती करती भई हे प्रभो आप रोस भएहो तो हमें मारो इसे छोडो कृपा करो प्रीतमका दुःख हमें मत दिखावो ज तुम सारखे पुरुषोत्तम है वे स्त्री और बालक बृडोंपर करुणाही करे हैं तब आप दयाकर कहते भए तुम चिन्ता न करो आगे भगवानका चैत्यालयहै: वहां इसे छोडेंगे ऐसा कह आप चैत्यालय में गए जाय कर श्रीराम से कहते भए कि हे देव यह सिंहोदर आयाहै श्राप कहो सो करें तब सिंहोदर हाथ जोड कांपता श्रीराम के पावन पड़ा और कहताभया हे देव तुम महाकांतिके घारी परम तेजस्वी हो सुमेरुसारिखे अचल पुरुषोत्तमहों में आपका आज्ञाकारी यह राज्य तुम्हारा तुम चाहो जिसे देवो मैं तुम्हारे चरणारविंद
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