Book Title: Padmapuran Bhasha
Author(s): Digambar Jain Granth Pracharak Pustakalay
Publisher: Digambar Jain Granth Pracharak Pustakalay
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पद्य
॥५२२॥
ने अनेक योधा विध्वंस किये तब और बहुत सामंत हाथी घोड़ोंपर चढ़े वक्तर पहिरे लक्ष्मण की चौगिरद फिरें नानाप्रकार शस्त्रों के धारक तब लक्ष्मण जैसे सिंह स्यालों को भगावे तैसे तिनको भगावता भया तब सिंहोदर कारीघय समान हाथीपर चढ़कर अनेक सुभटों सहित लक्ष्मण से लड़नेकोउद्यमी भया अनेक योधा मेघसमान लक्ष्मणरूप चंद्रमाको ढूंढ़ते भए सो सब योधा ऐसे भगाए जैसे पवन पाकके डोडों के जे फफंदे तिनको उड़ावे उस समय महायोधावोंकी कामिनी परस्परवार्ता करे हैं देखो यह एक महा सुभट अनेक योधाओंसे बेढ़ाहै परन्तु यह सबको जीते हैं कोई इसको जीतिवे शक्त नहीं धन्य है इसके माता पिता इत्यादि अनेक वार्ता सुभटॉकी स्त्री करे हैं और लचमणने सिंहोदरको कटकसहित चढ़ा देखा जका थम उपाड़ा और कटकके सन्मुख गए जैसे अग्नि बनको भस्म करे तैसे कटकके बहुत सुभट -विध्वंस किए और जो दशांगनगरके योधा नगरके दरवाजे ऊपर बजकर्णके समीप बैठेहुएथे सो फूल गए हैं नेत्र जिनके स्वामीसे कहते भए हे नाथ देखो यह एक पुरुष सिंहोदरके कटकसे लड़े है ध्वजारथ छत्र भग्न कर डारे परम ज्योतिका धारी है खडगसमान है कांति जिसकी समस्त कटकको व्याकुलतारूपभ्रमण में डागहै सब तरफ सेना भागी जायहै जैसे सिंहसे मृगोंके समूह भागें और भागते हुए सुभट परस्पर बतलावे हैं कि वक्तर उतारधरो हाथी घोड़े छोड़ो गदाखाडे में डार देवो ऊंचे शब्द न करो ऊंचाशब्द सुनकर शस्त्रकेधारकदेख यह भयानक पुरुष आय मारेगा अरेभाई यहांसे हाथी लेजावो कहां थांभरावा है गैलादेव अरे दुष्ट सारथी कहां रथको थांभ राखाहै अरे घोडे आगेको यह आया यह श्रआयाइसभांति । के बचनालाप करते महाकष्टको प्राप्तभए सुभट संग्राम तज आगे भागे जारहे हैं नपुंसक समान हो ।
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