Book Title: Padmapuran Bhasha
Author(s): Digambar Jain Granth Pracharak Pustakalay
Publisher: Digambar Jain Granth Pracharak Pustakalay
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पद्म पुराण
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हाथ में सो आयकर कहताभया हेराजा जो तू शरीरसे और राज्यभोगसे रहितभया चाहे तो उज्जयनी जावो नातर मत जावो सिंहोदर अति क्रोधको प्राप्त भया है तुमनमस्कार नकरोहो इसलियेतुमको माराचा हे है तु सो, यह सुनकर वज्रकर्ण ने विचारी कोऊ शत्रु मे रेविषे और नृप विषे भेद किया चाहे है उस ने मंत्र कर यह पठाया होय फिर बिचारी इस का रहस्य तो लेना तब एकान्त में उसे पूछता भया तू कौन है और तेरा नाम क्या और कहांसे आया है और यह गोप्य मन्त्रतैंने कैसे जाना तब वह कहता भया कुन्दननगर में महा धनवन्त एक समुद्रसंगम सेठ है उसके यमुना स्त्री उसके वर्षा काल में विजुरी के चमत्कार समय मेरा जन्म भया, इस लिये मेरा विद्युदंग नाम घरा सो मैं अनुक्रम से नव यौवन को प्राप्त होय व्यापार के अर्थ उज्जैनी में गया तहां कामलता वेश्या को देख अनुराग कर व्याकुल भया एक राति उससे संगम किया सो उसी ने प्रीति के बन्धन कर बांध लिया जैसे पारधी मृगको पांसि से बोधे मेरे बाप ने बहुत वर्षों में जो धन उपार्जा था सो में ऐसा कूपूत बेश्या के संग कर पट मास में सब खोया जैसे कमल में भ्रमर आसक्त होय तैसे उस में आसक्त भया, एक दिन वह नगरनायिका अपनी सखी के समीप अपने कुण्डलों की निन्दा करती थी सो में सुनी तवउससे पूछी उसने कही धन्य है राणी श्री महासौभाग्यवती उस के कानों में ऐसे कुण्डल हैं जैसे किसी के नहीं तब मैंने मन में चितई कि यदि मैं सी के कुण्डल हर कर इसकी आशा पूर्ण न करूं तो मेरे जीने कर क्या तब कुण्डल हरने को
अंधेरी रात्री में राज मन्दिर में गया सो राजा सिंहोदर कोप हो रहा था और राणी श्रीधरानिकट बैठी थी सोपी ने पूछा हे देव आज निद्रा काहे से न आवे है तब राजाने कही हे राणी में वज्रकर्णको
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