Book Title: Padmapuran Bhasha
Author(s): Digambar Jain Granth Pracharak Pustakalay
Publisher: Digambar Jain Granth Pracharak Pustakalay
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पद्म | छोटे से मोटाकिया औरमुझेसिर न नवावेसोउसेजबतक न मारूं तब तक आकुलता के योग्यसे निगा कहाँ
आवे एते मनुष्यों से निद्रा दूरही भागे अपमान से दग्ध और कुटुम्बी निर्धन शत्रुने आय दवाया अरु जीतने समर्थ नहीं और जिसके चित्त में शल्य तथो कायर और संसार से विरक्त इन से निद्रा दूरही रहे है यह वार्ता राजा और रानी की में सुनकर ऐसा होयगया मानो काहू ने मेरे हृदयमें वन की दीनी सो कुण्डल लेयवेकी बुद्धि तज यह रहस्ह लेय तेरे निकट प्राय अब तू वहांमतजाइयो कैसा है त जिन धर्म में उद्यमी है और निरन्तर साधुवोंका सेवकहै अंजनीगिरि पर्वतसे हाथी मदझरें तिन पर चढ़े योधा वक्तर पहिरे और महा तेजस्वी तुरंगों के असवार चिलते पहिरे महा क्रूर सामन्त तेरे मारनेके अर्थ गजाकी प्राज्ञासे मार्ग रोके खड़े हैं इसलियेतू कृपाकर अब वहां मतजा में तेरे पायनपरूं हूं मेरा वचन मान और तेरे मनमें प्रतीति नहीं आवे तो देख वह फौज पाई धूरके पटल उठे हैं महा शब्द होते आवे हैं यह विद्युदंग के वचन सुन वजूकर्णपर चक्रको प्रावते देख इसको परममित्र जान लार लेय अपने गढ़विषे तिष्ठा सिंहोदर के सुभट दरवाजे में श्रावने न दिये तब सिंहोदर सर्वसेना लार ले चढ़ आया सो गाढ़ाजान अपने कदक के लोक इनके मारनेके डरसे तत्काल गद लेने की बद्धि न करी गढ़के समीप डेरे कर वजकर्ण के समीप दूत भेजा सो अत्यन्त कठोर वचन कहता भया तू जिन शासनके गर्वसे मेरे ऐश्वर्यका कंटकभया जे घर खोवा यति तिन्होंने तुझे बहकाया तू न्याय रहितभयादेश मेरादिया खाय माथा अरहंतको नवावे तू मायाचारी है इसलिये शीघ्रही मेरे समीप आयकर मुझे प्रणाम कर नातर मारा जायगा यह वार्ता दूतने वजकर्णसे कही तत्र कर्ण ने जोजवाब दिया सो दूतजाय
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