Book Title: Padmapuran Bhasha
Author(s): Digambar Jain Granth Pracharak Pustakalay
Publisher: Digambar Jain Granth Pracharak Pustakalay
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पन्न | ज्ञानी मुनि सो उसने लोकन के मुखसे उनकी प्रशंसा सुनी कि अबधिज्ञान रूप किरणों कर जगत् में
प्रकाश करें हैं तब यह मुनि पै गया धन और पुत्र वधू के जानेसे महादुखी थाहीसो मुनिराजकी तपोऋद्धि देखकर और संसारकी झूठी माया जान तीव्र वैराग्य पाय विमुचि ब्राह्मणमुनि भया और विमुचिकी स्त्री अनुकोशा और कयान की माता ऊर्या ये दोनों ब्राह्मणी कमलकान्ता आर्यिकाके निकट आर्यिकाके व्रत धरतीभई सो विमुचि मुनिश्रीरखे दोनों आर्यिका तीनोंजीव महानिस्पृह धर्मध्यानके प्रसादसे स्वर्गलोकगए कैसाहै वह लोक सदाप्रकाशरूप है, विमुचिका पुत्र अतिभूत हिंसामार्ग का प्रशंसक और संयमी जीवोंका निन्दक सो शार्त रौद्रध्यानके योगसे दुर्गति गया और यह कयान भी दुर्गतिगया और वह सरसा अति भूतकी स्त्री जो कयानकी लार निकसीथी सो वलाहक पर्वतकी तलहटीमें मृगीभई, सो व्याघके भय से मृगोंके यूथसे अकेली होय दावानलमें जलमुई, सो जन्मांतर में चित्तोत्सवा भई और वह कयान भय भ्रमणकर ऊंटभया फिर धूम्रकेश कापुत्र पिंगल भया, और वह अतिभूत सरसाका पति भव भ्रमण करता राक्षससरोवर केतीर हंसभया, सो सिचानने इसको सर्वअंग घायलकिया, सो चैत्यालयके समीप पड़ावहां गुरु शिष्यको भगवान्का स्तोत्र पढ़ा-थे सो इसनेसुना, इसकी पर्याय छोड़ दसहज़ार वर्ष की आयु का धारी नगोत्तर नामा पर्वतविषे किन्नर देव भया वहां से चयकर विदग्धपुरका राजा कुंडलमण्डित भया सो पिंगल के पास से चित्तोत्सवा हरी सो उसका सकल वृतांत पूर्वे कहाही है, और वह विमुचि ब्राह्मण नो स्वर्गलोककोगयाथा सोराजा चन्द्रगति भया,और अनुकोशात्राह्मणी पुष्पवतीभई और वह कयानकै एकलेय पिंगल होय मुनिव्रतधार देवभया सो उसने भामण्डलको होते ही हरा,और वह ऊर्याब्राह्मणी देवलोकसेचयकर
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