Book Title: Padmapuran Bhasha
Author(s): Digambar Jain Granth Pracharak Pustakalay
Publisher: Digambar Jain Granth Pracharak Pustakalay
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पद्म
पुराण
।।४६९०
शुदभाव ले मनियों को साहारवान देश अन्तकाल घरीर मकरधातुकी खगडीप घिउमाकुरु भोगभूमि। में तीन पलवसुखभोग देव पर्याय ब्रहांसे चयकर पृचलायती मगरी किये रामानन्दीघोष राणी बसुपा उस के तन्द्रिवर्धन नामा पुत्र भया एक दिन राजा मनिषोष प्रशोधर नाम मुनि के निकट धर्म श्रवना कर तंदिवर्धन को राज्यदेय आप मुत्तिभया महातप कर स्वर्ग लोकगया और बान्दिवर्थन ले थावक के व्रत धारे पञ्चनमोंकार के स्मरण विये तत्पर कोहि पर्व पस्यन्त महाराज्य पद के मुख भोग कर अन्तकाल समाधि मरण कर पञ्चमें देवलोक गया वहां से चयकर पश्चिम बिदेह विने विजयाध पर्वत वहां शशिपुर नाम नगर वहां राजा रत्नमाली उसके राणी क्तिलता उसके सूर्य जब मामा पुत्र भया एक दिन रत्न माली महा बलवान नाम सिंहपुर का राजा बज्रलोचन तासूयुद्ध करने को गया। अनेक दिव्य रथ हाथी घोड़े पियादे महा पराक्रमी सामन्त लार नानाप्रकार वस्त्रों के धारक राजा होट डसता धनुष चढ़ाय वस्त्र पहिरे रथ विषे प्रारुढ भयानक प्राकृतिको घरे आग्नेय विद्याधरशत्रुके स्थानक को दग्ध करवेकी है इच्छा जिसके उस समय कोई एक देव तत्काल आयकर कहता भया हे रत्नमाली तैने यह क्या आरम्भा अब तू क्रोध तज मैं तेरा पूर्व भवका वृत्तान्त कहूं हूं सो सुन भरत क्षेत्र विषे गांधारी नगरी वहां राजा भूति उसके पुरोहित उपमन्यु सो राजा और पुरोहित दोनों पापी मांसभक्षी एक दिन राजा कवलगर्भ स्वामी के मुखसे ब्याख्यान सुन यह व्रत लिया कि मैं पाप का अाचरण न करूं सो बृत मन्यु पुरोहितने छुड़ाय दियो एकसमय राजापर परक्षत्रुवोंकी धाड आई सो राजा और पुरोहित दोनों मारे गए पुरोहितका जीव हाथी भया सोहाथी युद्धमें घायल होय नमोकार मन्त्र का श्रवण कर
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