Book Title: Padmapuran Bhasha
Author(s): Digambar Jain Granth Pracharak Pustakalay
Publisher: Digambar Jain Granth Pracharak Pustakalay
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पन्न
४४७३
| भया और में क्रोध उपजाऊं सो. योग्य नहीं और मोहि ऐसे विचार कर क्या योग्य और अयोग्य पिता
जाने अथवा वडाभाईजाने जिसमें पिताकी कीर्ति उज्ज्वल होय सो कर्तव्य है। मुझे किसीको कछु न कहना में मौन पकड बडे भाई के संग जाऊंगा कैसा है यह भाई साधु समान है भाव जिसके ऐसा विचार कर कोप तज धनुष. वागलेय समस्त गुरुजनों को प्रणाम कर महाबिनय संपन्न राम के संग चला दोनों भाई. जैसे देवालय से देवनिकले तैसे मन्दिर से निकसे और माता पिता सकल परिवार और भरत शत्रुघ्न सहित इनके वियोग में अश्रूपात कर मानों वर्षा ऋतु करते संते राखवे.को चले सोराम लक्ष्मण अतिपिताभक्त । सम्बोधने को महापंडित विदेश जायवेही कहि निश्चय जिनकेसोमातापिताकीबहुत स्तुतिकर बारंबार नम.
स्कारकरबहुतधीर्यवंधायमुशकिलसेपीछेफेरे सोनगरमें हाहाकार भयो लोकवार्ताकरे हैं हेमात यह क्या भया यह कौन ने मत उठाया इस नगरी ही का अभाग्यहै अथवा सकलपृथिवीकाअभाग्य है हम तो अब यहां न रहेंगे इनके लार चलेंगे ये महासमर्थ हैं और देखो यह सीता नोथ के संग चली है और राम की - सेवा करणहारा लक्ष्मण भाई है धन्य है यह जानकी बिनयरूप वस्त्र पहिरे भरतार के संग जाय है नगर की नारी कहे हैं हम सबको शिक्षा देनहारी यह सीतामहापतित्रता हैइस समान और नारी नहीं ने महा पतिव्रता होंय सो इसकी उपमा पावें पतिव्रताओं के भरतार ही देव हैं और देखो यह लक्ष्मण माता को रोवती बोड़ बड़े भाई के संग माय है धन्य इसकीभक्ति धन्यइसकीपीति धन्यइसकीशक्ति धन्यइसकीचमा अन्य इसकीविनय की अधिकता इस समान और नहीं और दशरवनेभरतको यहक्यामाज्ञाकरीजो तू राज्य लहु और राम खस्मणको यह क्या बुद्धि उपजी जोअयोध्याको छोड़ यो जिसकालमेंजो होनी होय सोहोय है ।
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