Book Title: Padmapuran Bhasha
Author(s): Digambar Jain Granth Pracharak Pustakalay
Publisher: Digambar Jain Granth Pracharak Pustakalay
View full book text
________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobetirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
पन जाने तू निश्चित राज्यकर में सकल राज ऋद्धि तज देशसे दूर रहूंगा और पृथ्वी को पीड़ा किसी ४ प्रकार न होयगी इसलिये अब तू दीर्घ सांस मत डारे कैयक दिन पिताकी प्राज्ञामान राज्यकर न्याय | सहित पृथ्वीकी रक्षाकर हे निर्मलस्वभाव यह इक्ष्वाकु वंशियोंका कुल उसे तू अत्यन्त शोभायमान कर जैसे चन्द्रमाग्रह नक्षत्राविकको शोभायमान करे है भाईका यही भाईपना पंडितों ने कहाहै कि भाइयों की रक्षा करे संताप हरे श्रीरामचन्द्र ऐसे बचन कहकर पिताके चरणोंको भाव सहित प्रणाम कर चल पड़ें ता पिताको मर्श ग्रामई काष्ठके स्तम्भसमान शरीर होगया राम तर्कश बांध धनुष हाथमें लेय माता को नमस्कार कर कहते भए हे माता हम अन्य देशको जांय? तुम चिन्ता न करनी तब माता को भी मूबी नामई फिर सचेत होय मम बरती सैती कहती भई किहे पुत्र तुम मुझे शोक के समुद्रमै डार कहाँ आम हो तुम उत्तम टाके वस्णाहोमाताका पुत्र मालवन है जैसे शाखा के 'मैल आवरी माता कस्ता विलाप करतीमई माताको मतिमें तत्पर उसे प्रणाम का कहितमएहें माता तुम सिरमकरी में reart कोई मानककर तुमको निस्सन्देह बुलाऊंगा हमार पितनि माता कोबाईपादिया मासो मस्तको सम्पादिया अकामे यहां का स्ट्र विन्यावासाके बेमें यया मलबाक्लक बन तथा समुक्के समीप स्थानक कागा में सूर्पकमान यहां रहूं में भरत न्द्रमांकी पाऐश्वर्य पतिमावि तमासामीमा जो पुत्र उसे उरसेलगायरुदन करती सतीस्तीमई पुत्र मुमै सुम्मा संगचलना वितो तुमको देखें बिना में शोंके स्खनको समर्थ
कुलपती निलया पति तापही पाप में से पिता तो कास क्समपा |
% 3D
For Private and Personal Use Only