Book Title: Padmapuran Bhasha
Author(s): Digambar Jain Granth Pracharak Pustakalay
Publisher: Digambar Jain Granth Pracharak Pustakalay
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पुराव
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जिस के जैसा कर्म उदयहोय तैसीही होय जो भगवान्के ज्ञानमें भासा है सोहोय दैवगति दुर्निवार है, यह । बात बहुत अनुचित होय है यहां के देवता कहां गए ऐसे लोगों के मुखसे ध्वनि होती भई । सब लोक इनकेलार चलनेको उद्यमी भए घरों से निकसे नगरी का उत्साह जाता रहा शोककर पूर्ण जो लोकतिनके अश्रुपातों कर पृथिवी सजल होय गई जैसे समुद्र की लहर उठे है तैसे लोक उठे राम के संग घले, मने किये भी न रहें राम को भक्ति कर लोक पूजें संभाषण करेंसो राम पेंड पेंड में विघ्न मानें इन का भाव चलने का लोक ऐसाचाहें के लार चलें राम का विदेश गमन मानो सूर्य देख न सका, सो अस्त होने लगा अस्त समय सूर्य के प्रकाश ने सर्व दिशा तजी जैसे भरत चक्रवर्ती ने मुक्ति के निमित्त राज्य संपदा तजी थी सूर्य के अस्त होते परम राग को धरती संती सन्ध्या सूर्य के पीछे ही चली, जैसे सीताराम के पीछे चले और समस्त विज्ञान का विध्वंस करणहारा अन्धकार जगत् में ब्याप्त भया, मानों राम को , गमन से तिमिर बिस्तरा, लोगलार लागे सोरहें नहीं तब समने लोकोंके टारिनेको श्री अरनाथ तीर्थकर के चैत्यालयमें निवासकरना विचारा संसारकेतारणहारे भगवानतिनकाभवनसदारोभायमान महासुगन्ध अष्ट मंगल द्रव्यों कर मंद्रित जिसके तीनदरवाजे ऊंचातोरण सो राम लक्ष्मण सीताप्रदक्षिणा देय चैत्यालयर्मे गए समस्त विधिके वेत्ता दोयदरवाज़ेतक तोलोक चलेगए तीसरे दरवाजे पर द्वारपालने रोकाजैसें मोहिनीकर्म मिथ्या दृष्टियों को शिवपुर जाने से रोके है, राम लक्ष्मण धनुषबाण और वखतर वाहिर मेल भीतर दर्शनको गए कमल समान हें नेत्र जिनके श्रीअरनाथ का प्रतिक्विरत्नों केसिंहासनपरविराजमान महाशोभायमान महासौम्यकायोत्सर्गश्रीवत्सलक्षणकर देदीप्यमानहै उरस्थलजिनकाप्रकट हैं समस्तलक्षण |
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