Book Title: Padmapuran Bhasha
Author(s): Digambar Jain Granth Pracharak Pustakalay
Publisher: Digambar Jain Granth Pracharak Pustakalay
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भए परमशुक्लध्यान की है अभिलाषी जिनके तथापि पुत्रके मोकार कमीकबुककलुषताउपज प्रावे खोएक दिन योखिचया विचास्ते अपति संसारको हकका मूलपहनासकामो इपिाकारहोइसीकर कर्म बंधे हैं में अमन्तमम्म घरे सिनो र्गम अस्म भी बहुतधरे सो मेरेशार्थ जन्म के अनेक मासाक्षिा भाई पुत्र कांपए अनेक बार में देवलोक के भोग भोगे और भनेकपा- नाककेस भोगे तिचगतिम मेराझीर अनेक बारइन जीवोंमे अहमका में भला मानारूपयोंदिय जिलाविणे में बहुतदुख भोगे और बहुत्वार कदनकिया और रुदनकेशनसमोरबहुतवारचीणवांसुरी पारिवादियोंके नारसनो गीतसुने मुख्य देखे देवलोकविषे मनोहर अप्सरामोंके भोग भोगे अनेक वार मेरा शुजर नरक किो कुहाड़ों करकाया ममा और अनेकवार मनुष्यगति विषे महा सुगंध महावीर्यका कैरणहारा षट्रस संयुक्त अन्नबाधार किया और अनेक वार नरकविषे गालासीसा पोस्तांका नारकीयों ने मारमार सभी प्याया और भनेकवार सुरनर गतिमें मनके हरणहारे सुंदररूपदेसे और सुंदररूपपारे और अनेकवार नरकवि महाकल्पपारे मारनानापकारके त्रास देखे कैयक बार राजपद देवपद में नानाप्रकारकसुगन्धसूंघे जिन पर भ्रमर गुंजारकरें और कैयक वार नरक की महा दुर्गन्ध सूंघी और अनेक बार मनुष्य क्या देवगति विषेमहालीला की घरणहारी बस्त्राभरण मंडिल मनकी चोरणेहारी जे मारी तिम सों आलिंगन कीयो और बहुत बार नरकों विषेजे कूटशाल्मलि | बृच तिनके तिषण कंटक और प्रज्वलतीलोह की पुतलीयों से स्पर्श किया, इस संसारविषे कर्मों के संयोग | से मैं क्या क्या न देखा क्या क्या न स्पर्शा क्या क्या न सूंघा क्या क्या न सुना क्या क्या न भला और
पृथिवीकाय जलेकायमग्निकाय वायुकायचनस्पतिकापत्रसकाय विषे असादेहनहीं जोमें नधारा,सीनलोक
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