Book Title: Padmapuran Bhasha
Author(s): Digambar Jain Granth Pracharak Pustakalay
Publisher: Digambar Jain Granth Pracharak Pustakalay
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पुराख ॥४५चा
पम राणी विदेहा भई । यह सकल वृत्तान्त राजा दशरथ सुनकर भामण्डल से मिला और नेत्र अश्रूपातसे भरलीये
अोर संपूर्णसभा यह कथा सुनकरसजलनेत्र होगई और रोमांच होयाए और सीता अपने भाई भामंडल को देख स्नेहकर मिली और रुदन करती भई, कि हे भाई में तुझे प्रथमही देखा और श्रीराम लक्ष्मण उठ कर भामण्डलसे मिले, मुनिको नमस्कार कर खेचर भूचरसवही बनसे नगरको गए भामण्डल से मन्त्र कर राजा
दशरथने जनक राजा के पास विद्याधर पठाया और जनकको प्रावनेके अर्थ विमान भेजे राजा दशरथ ने || भामण्डलका बहुत सन्मान किया और भामण्डलको अतिरमणीक महिल रहिबेको दीए जहां सुन्दर वापी | सरोवर उपवनहें सो वहां भामण्डल सुखसेतिष्ठा, और राजा दशरथने भामण्डलके वनेका बहुत उत्सव किया याचकों को बांबा से भी अधिक दान दिया,सो दरिद्र से रहित भए. और राजा जनकके निकट पपनसे भी अति शीघ विद्याधर गए, जायकर पुत्र के आगमनकी वधाईदी और राजा दशरयका और भामंडलका पत्र दिया सो पांच कर जनक अतिआनन्द को प्राप्त भया, रोमांच होय श्राए, विद्याधर से राजा पूछे है हे भाई यह स्वप्न है या प्रत्यक्ष है तू पा हमसे मिल, ऐसा कहकर राजा मिले और लोचन सजल होय पाए जैसा हर्ष पुत्रके मिलने का होय तैसा पत्र लानेवाले से मिलनेका हर्ष भया सम्पूर्ण वस्त्र प्राभूषण उसे दिए सव कुटुम्ब के लोगोंने भेले होय उत्सव किया, और बारम्बार पुत्रका वृत्तान्त उसे पूछेहैं और सुन सुन तृप्त न होंय विद्याधर मे सकल वृत्तान्त विस्तार से कहा उसी समय राजा जनक सर्व कुटम्ब सहित विमान में बैठ अयोध्या को चले सो एक निमिष में जाय पहुंचे कैसी है अयोध्या जहां वादित्रों के नाद होय रहें हैं, जनक शीघही विमानसे उतर पुत्र से मिला, सुखकर नेत्र मिल गए, क्षण एक मूर्छा पाय |
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