Book Title: Padmapuran Bhasha
Author(s): Digambar Jain Granth Pracharak Pustakalay
Publisher: Digambar Jain Granth Pracharak Pustakalay
View full book text
________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
पद्म पुराण
धनुषका करारभया जो धनुष राम चढ़ावें तो कन्याको परणे नातर हम यहांले आवेंगे और भामण्डल बिवाहेगा सो धनुषलेकर यहां से विद्याधर मिथिलापुरीगए सो राममहा पुण्याधिकारीने धनुष चढ़ायाही तब स्वयंबर ४४९मंडपमें जनककी पुत्री अति गुणवती महा विवेकवती पतिके हृदयकी हरणहारी ब्रत नियमकी धरन हारी नव यौवन मंडित दोषों से अखंडित सर्व कला पूर्ण शरद ॠतुकी पूर्णमासी के चन्द्रमा समान मुखकी कांतिको घरे लक्ष्मी सारखी शुभलक्षण लावण्यताकर युक्त सीता महासती श्रीराम के कंठ में बरमाला डार बल्लभा होती भई हे कुमार वे धनुष वर्तमान कालके नहीं गदा और हल आदि देवों पुनीत रत्नोंसे युक्त अनेक देव जिनकी सेवा करें कोई जिनको देख न सके सो वज्रावर्त सागरावर्त दोनों धनुषराम लक्ष्मण दोनों भाई चढावते भएवह त्रिलोक सुन्दरीरामने परखी अयोध्या ले गएसी अब वहवलात्कार देवोंसे भी न हारी जाय हमारी क्या बात और कदाचित कहोगे रामको परणाये पहले ही क्यों म. हरी सो जनक का मित्र रावण का जमाई मधुहै सो हम कैसे हरसकें इस लिये हे कुमार ! अव संतोष घरो निर्मलता भजो होनहार होयसो होय इन्द्रादिक भी और भांतिन करसकें तव धनुषचढ़ावनेका वृतान्त और राम से सीता का विहाह हो गया सुन भामण्डल अति लज्जावानहोय विषाद से पूर्ण भया मन में विचारे है जो मेरा यह विद्याधर का जन्म निरर्थक है जो मैं हीन पुरुषकी म्याईं उसे न परण सका ईषा और क्रोध से मंडितहोय सभा के लोकों को कहता भया कहां तुम्हारा विद्याधरपना तुम भूमिंगोचारियों से भी डरो हो "मैं आप जायकर भूमि गोवरियों को जीत उस को ले आऊंगा और जे धनुष दे आए तिनका निग्रह करूंगा सो कहकर शस्त्र सज विमान विषे चढ़ आकाश के मार्ग गया अनेक ग्राम नदी
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
For Private and Personal Use Only