Book Title: Padmapuran Bhasha
Author(s): Digambar Jain Granth Pracharak Pustakalay
Publisher: Digambar Jain Granth Pracharak Pustakalay
View full book text
________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
www.kobetirth.org
॥४५॥
। नगर बन उपवन सरोबर पर्वतादि पूर्ण पृथिवी मंडलदेखा तब इस की दृष्टि जो अपनेपूर्वभवका स्थानक विग्धपुर पहाड़ों के वीचथा वहां पड़ी चित्तमें चितई कि यहनगर मैंने देखा है इतने में जाति स्मरणहोय मुळ प्राय गई तब मंत्री ब्याकुल होय पिताके निकटले पाए चन्दनादि शीतलद्रब्योंसे छांटा तब प्रबोध को प्राप्तभया राजलोक की स्त्री इसेकहती भई हे कुमार तुमको यह उचितनहीं जो मातापिताके निकट ऐसीलज्जारहित चेष्टाकरो तुमतो विचक्षण हो विद्याधरोंकी कन्या देवांगनासे भी अतिसुन्दरहें वे परणों लोकहासकहा करावो हो तब भामण्डल ने लज्जा और शोकसे मुखनीचा किया और कहताभया धिक्कार है मुझको मैंने महामोहसे विरुधकाय्यं चिंता जोचीडालादि अत्यन्त नीचकुल हैं तिनके भी यह कर्म न होंय मैने अशुभ कर्म के उदय से अत्यन्तमलिनपरणाम किये में और सीता एकही माताकंउदरसे उपजे हैं सो अव मेर अशुभकर्म गया तो जथार्थजानी सो इसके ऐसेवचन सुनकर और शोककर पीड़ितदेख इस का पिता राजा चन्द्रगति गोदमें लेय मुख चूम पूछता भया हे पुत्र यह तैनेकौनभान्ति कहातबकुमार कहताभया।हे तात मेरा चरित्र सुनो पूर्वभवमें मैं इसही भरतक्षेत्रमें विदग्धपुर नगरका कुंडल मंडित राजाथा परमंडलका लटनहारा महाविग्रहका करणहारा पृथ्वीपर प्रसिद्ध निजप्रभाका पालक महाविभवकर संयुक्त सो मैं पापीने मायाचारकर एक विप्रकी स्त्री हरी सो वह विप्रतो अतिदुखी होय कहीं चला गया और मैंने राजा अरण्य के देशमें बाधा करी सो अरण्यका सेनापति बालचन्द्र मुझे पकडकर लेगया
और मेरी सर्व सम्पदा हर लीनी में शरीरमात्र रह गया कैएक दिन में बन्दीग्रहसे छूटा सो महादुःखित पृथ्वीपर भमण करता मुनियोंके दर्शनको गया महावत अणुव्रतका व्याख्यान मुना तीन लोक पूजा
For Private and Personal Use Only