Book Title: Padmapuran Bhasha
Author(s): Digambar Jain Granth Pracharak Pustakalay
Publisher: Digambar Jain Granth Pracharak Pustakalay
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पद्म थी उसकी जांघोंके मध्यधर दिया और राजा कहताभया हे राणी उठो उठो तुम्हारे बालक भयाहै बालक पुराण
महाशोभायमानहै तब राणी सुन्दरहै मुख जिसका ऐसे बालकको देख प्रसन्न भई उसकी ज्योति के ॥४११५ ॥
समूहकर निद्रा जाती रही महाविस्मयको प्राप्तहोय राजाको पूछती भई हे नाथ यह अद्भुत बालक कौन पुण्यवती स्त्रीने जाया । तब राजाने कही हे प्यारी तैंने जना, तो समान और पुण्यवती कौन धन्य है भाग्य तेरा जिसके ऐसा पुत्र भया तब वह गणी कहती भई हे देव मैं तो बांझहूं मेरेपुत्र कझं एक तो मुझे पूर्वोपार्जित कर्मने ठगी फिर तुम क्यों हास्य करोहो तब गजाने कही हे देवी तुम शंका मत करो स्त्रियोंके प्रछन्न (गुप्त) भी गर्भ होयहै तब राणीने कही ऐसेंही हो हुं परन्तु इसके यह मनोहर कुंडल कहांसे श्राए ऐसे भूमंडलमें नहीं तब राजाने कही हे राणी ऐसे बिचारकर क्या यह बालक अाकाशसे पड़ा और में झेला तुझे दिया यह बड़े कुलका पुत्रहै इसके लक्षणोंकर जानिए है यह मोटा पुरुषहै अन्य स्रीतो गर्भके भारकर खेदखिन्न भई है परन्तु हे प्रिये तैंने इसे सुखसे पाया और अपनी कुक्षिमें उपजा भी बालक जो मातापिताका भक्कन होय और विवेकी न होय शुभकाम न करतो उसकर क्या कईएक पुत्र शत्रु समानहोय परणवे हैं इसलिये उदरके पुत्रका क्या विचार तेरेयह पुत्र सुपुत्र होयगा शोभनीकवस्तुमें सन्देह क्या अब तुम इस पुत्रको लेवोऔर प्रसूतिके घरमें प्रवेशकर और लोकोंको यही जनावना जो राणीके गुप्त गर्भथा सो पुत्रभया तंब राणी पतिकी आज्ञा प्रमाण प्रसन्न होय प्रमूतिगृहमें गई प्रभातमें राजाने पुत्रके जन्मका उत्सव किया रथनूपुरमें पुत्रके जन्मका ऐसा | उत्सवभया जो सर्व कुटम्ब और नगरके लोग आश्चर्यको प्राप्तभए रत्नोंके कुंडलकी किरणोंकर मंडित ।
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