Book Title: Padmapuran Bhasha
Author(s): Digambar Jain Granth Pracharak Pustakalay
Publisher: Digambar Jain Granth Pracharak Pustakalay
View full book text
________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
पद्म
पुराण
किया परन्तु कहीं भी देखा नहीं तब महाकष्टकर शोकको दाब बैठ रहे ऐसा कोई पुरुष अथवा स्त्री नहीं #४९३" जो इस बालक के गए सुयोंकर भरे नेत्र न मया होय सबही शोकके बशहोय रुदन करते भए । अथानन्तर प्रभामंडल के गएका शोक भुलावनेको महा मनोहर जानकी बाल लीला करे सर्व लोकको आनन्द उपजावती भई महा हर्ष को प्राप्त भई जो स्त्रीजन उनकी गोद में तिष्ठती अपने शरीरकी कातिर दशों दिशा को प्रकाशरूप करती वृद्धिको प्राप्त भई कैसी है जानकी कमल सारिखे हैं नेत्र जिस के और महासुकंठ प्रसन्न वदन मानों पद्मद्रह के कमल के निवास से साक्षात् श्री देवी ही आई है, उसके शरीररूप क्षेत्र में गुणरूप धान्य निपजतेभए ज्यों ज्यों शरीर बढ़ा त्यों त्यों गुण बढे समस्त लोकों को सुखदाता अत्यंतमनोज्ञ सुन्दर लक्षणों कर संयुक्त है अंग जिस का, सीता कहिए भूमि उस समान क्षमा की घरणहारी इसलिये जगत् में सीता कहाई, बदन कर जीता है चन्द्रमा जिसने पल्लव समान हैं कोमल भारक्त हस्त जिसके, महाश्याम महासुन्दर इन्द्रनील मणि समाम हैं केशों के समूह जिसके और नीती है मदकी भरी हंसनी की चाल जिसने और सुन्दर हैं भों जिसकी और मोलश्री के पुष्प समान मुख की सुगन्ध गुंजार करे हैं अगर जिस पर अतिकोमस्त्र हैं पुष्पमाखा समान भुजा जिसकी ओर केही समान है कटि जिसकी और महाश्रेष्ठ रस का बस जो केलेका गंभ उस समान हैं जंघा जिसकी स्थल कमल समान महाममोहर हैं पर जिसके और अतिसुन्दर हैं कुचयुग्म जिसका अति शोभायमान है रूप जिसका महाश्रेष्ठ मंदिर के चांगल में महारमयीक सातसे कन्याओंके समूह में शास्त्रोक्त कीब करे, जो कदाचित् इन्द्र की पटराणी रात्री बच्चा चकवच की पटराणी सुभद्रा इसके अंग की शोभा को
For Private and Personal Use Only