Book Title: Padmapuran Bhasha
Author(s): Digambar Jain Granth Pracharak Pustakalay
Publisher: Digambar Jain Granth Pracharak Pustakalay
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पुराण ॥४१॥
भासें मानों कुटक जाति के वृक्षही फूलेहें और कै यक भील भयानक आयुधों कोधरेकठोर हैं जंघाजिन की भारी भुजावों के धरणहारे अमुरकुमार देवों सारिखे उनमत्त महा निर्दई पशुमांसके भक्षक महादृढ़ जीव हिंसाविषे उद्यमी जन्मही से लेकर पापोंके करणहारे तत्काल खोटे प्रारम्भन के करणहारे और सूकर भैंसा व्याघ्र ल्याली इत्यादि जीवोंके चिन्हहैं जिनकी ध्वजावों में नानाप्रकार के जे बाहन तिन पर चढ़े पत्रों के छत्र जिनके नानाप्रकार के युद्धके करण हारे अति दौड़ के करणहारे मया प्रचन्ड तुरंग समान चंचल वे भील मेघमाला समान लक्ष्मणरूप पर्वतपर अपने स्वामी रूपपवनके प्रेरेबाण। वृष्टि करते भए तबलक्ष्मण तिनके निपात करनेको उद्यमी तिनपर दौडे महाशीघ्र है वेग जिनका जैसे । महा राजेंद्र वृक्षोंके समूह पर दौडेसो लक्ष्मण के तेज प्रतापकर वे पापी भागे सो परस्पर पगों कर मसले गए तब उनका अधिपति अन्तरगत अपनी सेना को धीर्य बंधाय सकल सेना सहित श्राप लक्ष्मण के सन्मुख पाया महाभयन्कर युद्ध किया लक्ष्मणको रथ रहित किया तब श्रीरामचन्द्रने अपना रथचलाया पवनसमान है वेग जिसका लक्ष्मणके समीपाए लछमण कोदूजरथ पर चढाया औरआप जैसे अग्नि वन को भस्म करे तैसे तिनकी अपार सेना को बाण रूप अग्नि कर भस्म करते भए कैयकतोबागोंसे मारे और कैयककनकनामा शस्त्रसेविध्वंसे कैयक तोमरनामा श्रायुधसे हते कैयक सामान्य चक्रनामा शस्त्रसे निपात किए वह म्लेछौकी सेना महाभयंकर प्रत्येक दिशाको जातीरही क्षत्रचमर ध्वजा घनुष आदि शस्त्रडारडार भाजे महा पुण्याधिकारी जो राम उसने एक निमिष में ग्लेखोंका निराकरण कियाजैसे महामुनि क्षणमात्रमें सर्व कषायोंका निपात करें तैसे उसने किया वह पापी अंतरंगत अपारसेना |
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